देहरादून। उत्तराखंड राज्य में हुए भर्ती घोटालों और युवा बेरोजगारों के उत्पीड़न की पीड़ा को बयां करने वाला एक वीडियो इन दिनों अच्छी खासी सुर्खियां बटोर रहा है। जौनसारी लोकगीत के माध्यम से जिस तरह से शासन-प्रशासन को गीतकार और गायक ने सच का आईना दिखाने का काम किया उसकी चारों तरफ सराहना हो रही है। यह बात अलग है कि शासन-प्रशासन में बैठे लोगों को यह पसंद न आ रहा हो और लेकिन सच कहने वाले तो सच कहते ही रहेंगे।
तत्कालीन स्व. मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के शासनकाल में उत्तराखंड के मशहूर लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी द्वारा गाए गए नौछमी नरैणा और पिछले दिनों गाये गीत लोकतंत्रमा ने जिस तरह से सूबे के राजनीतिक हलकों में तहलका मचा दिया था ठीक उसी की तर्ज पर इस जौनसारी लोकगीत को गाकर किशन सिंह तोमर भी खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं। ऐसा एक और लोकगीत अंग्रेजी शराब को लेकर चर्चाओं में रह चुका है। उत्तराखंड के लोक गायक और रचनाकार समयकृसमय पर शासनकृप्रशासन को उनकी करतूतों को लेकर न सिर्फ सतर्क करते रहे हैं बल्कि उन्हें उनके सच से रूबरू कराते रहे हैं लेकिन यह अलग बात है कि सूबे के नेता व अधिकारी कुछ भी समझने और मानने को तैयार नहीं है। सूबे में जिस तरह से सरकारी नौकरियों की लूटपाट हुई और नकल माफिया ने युवा बेरोजगारों के सपनों को चकनाचूर किया वह वास्तव में अत्यंत ही हैरान करने वाला है। इस गीत में युवा बेरोजगारों पर लाठियां फटकारने वाले नेता व अधिकारियों को जिस तरह से युवा गीतकार ने फटकारा है और लोगों से अपील की है कि वह जब तुम्हारे गांव में वोट मांगने के लिए आए तो उनका स्वागत जूतों की मालाओं से करना, उनके दर्द की पराकाष्ठा को ही बयां करता है। यह सच है कि अब वह वक्त नहीं रहा है जब लोगों की सोच होती थी कि निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय’। आज के लोगों को तो चापलूसों की जरूरत है निंदको की नहीं। निंदक तो आज के दौर में सबसे बड़े दुश्मन हो चुके हैं लेकिन लोकगायक या संगीतकार और साहित्यकार भी अपना धर्म कैसे छोड़ सकते हैं वह समाज को आईना दिखाने के लिए पैदा होते हैं।
भर्ती घोटालों और युवा बेरोजगारों के उत्पीड़न की पीड़ा पर आया जौनसारी गीत
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