Tuesday, April 23, 2024
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दक्षिणी ध्रुव में हरप्रीत चंडी का प्रचंड

अरुण नैथानी
चारों तरफ निर्जन बर्फीला इलाका, बर्फबारी, रक्त जमाती ठंड में तेज हवाएं और अकेली जान। कल्पना करके ही रूह कांपती है। मगर सही मायनों में चंडी बनकर एक भारतवंशी हरप्रीत ने अकेले बर्फीले दक्षिणी ध्रुव पहुंचकर नया इतिहास रच दिया। एक आम स्त्री से इतर अपनी सीमाओं से परे जाकर हरप्रीत चंडी ने यह कारनामा कर दिखाया। वह कहती भी है कि ‘मेरा यह अभियान मेरी क्षमताओं से कहीं आगे था। हममें अपनी सीमाओं से आगे जाकर अनूठा कर गुजरने का संकल्प होना चाहिए। खुद पर विश्वास करने से यह संकल्प पूरा हो सकता है।’ अपने इस अभियान में हरप्रीत साहस-संकल्प के साथ आगे बढ़ती गईं। दुनिया को अपने नियमित ब्लॉग लेखन से अपनी कामयाबी के किस्से बताती रही। विषम परिस्थितियों में जूझते हुए आगे बढऩे में गजब का जज्बा दिखाया हरप्रीत ने। इस तरह वह अकेले दक्षिणी ध्रुव का अभियान पूरा करने वाली पहली अश्वेत महिला बनकर इतिहास का हिस्सा बन गई।

दरअसल, दक्षिणी ध्रुव धरती का सबसे ठंडा, सबसे ऊंचा, सर्वाधिक शुष्क व तेज हवाओं वाला महाद्वीप है जहां सामान्य मानव जीवन संभव नहीं है। कोई स्थायी रूप से वहां रह नहीं सकता। यह अभियान शुरू करने से पहले हरप्रीत को भी दुनिया के इस जटिलतम परिवेश वाले इलाके के बारे में कोई खास जानकारी नहीं थी। लेकिन इस दुर्गम इलाके की मुश्किलों ने हरप्रीत को इस इलाके में जाने के लिये प्रेरित किया। दरअसल, बिना किसी सहायता के अकेले इस दुर्गम यात्रा को सफलतापूर्वक पूरा करने वाली हरप्रीत ब्रिटिश सेना की सिख रेजिमेंट की सैनिक अधिकारी हैं। कैप्टन हरप्रीत महज उन्नीस साल की उम्र में रिजर्व आर्मी में भर्ती हुई। फिर पच्चीस साल की उम्र में नियमित सेना का हिस्सा बनी। उसकी भूमिका फिजियोथेरेपिस्ट की है। वह सैन्य चिकित्सकों को प्रशिक्षण देती है। वर्तमान में ब्रिटिश सेना में क्लीनिकल ट्रेनिंग अधिकारी है। हरप्रीत ब्रिटेन में उत्तर-पश्चिम इंग्लैंड के मेडिकल रेजिमेंट में नियुक्त है। साथ ही उसकी पढ़ाई भी जारी है और क्वीन मैरीज यूनिवर्सिटी से स्पोर्ट्स एंड एक्सरसाइज मेडिसिन में पीजी कर रही है। एक कुशल धावक भी है। एथलीट के रूप में कई मैराथनों में भाग लिया है। वह संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना का भी हिस्सा रही है, जिसके अंतर्गत उसने नेपाल, केन्या व दक्षिण सूडान में अपनी सेवाएं दीं।

इस कामयाबी को अंजाम देने वाली हरप्रीत ‘पोलर प्रीत’ के नाम से भी जानी जाती है। इस कठिन यात्रा के चालीस दिनों में हरप्रीत ने 1,127 किलोमीटर का सफर तय किया। यह सोचकर रूह कांपती है कि इस निर्जन इलाके में कैसे हरप्रीत ने शून्य से पचास डिग्री सेल्सियस नीचे के तापमान में नब्बे किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड वाली हवाओं के बीच यह यात्रा पूरी की होगी। साथ ही नब्बे किलो भार वाले स्लेज गाड़ी को अकेले खींचना, जिसमें उसका जीवन रक्षा का सामान रहता था। कुछ साल पहले तक ध्रुवीय दुनिया के बारे में कुछ न जानने वाली हरप्रीत आज उस पर विजय पताका लहरा चुकी है। उसकी सफलता का उद्घोष दुनिया को सही मायनों में नारी शक्ति की हकीकत का अहसास करा गया। निस्संदेह, हरप्रीत शारीरिक व मानसिक तौर पर एक मजबूत प्रतिनिधि चेहरा है। वह हमेशा से सामान्य जीवन से इतर कुछ खास करने को प्रतिबद्ध रही है। वह सामान्य से आगे अपना नया सामान्य बनाने में विश्वास रखती है। वह इसे परंपरा से विद्रोह नहीं मानती, लेकिन सामान्य की सीमाओं को तोडऩा चाहती है।

अपनी इस जटिल व बेहद कष्टकारी यात्रा का आंखों देखा हाल हरप्रीत बाहरी दुनिया को अवगत कराती रही। इसके लिये उसने लाइव ट्रैकिंग मैप अपलोड किया था। वह इस बर्फीले संसार की हकीकत नियमित ब्लॉग लिखकर शेष दुनिया को बताती रही। फौलादी इरादों वाली हरप्रीत मानती है कि यदि हम इरादा कर लें तो सब कुछ करने में सक्षम हैं। साथ ही अन्य बातें महत्व नहीं रखती हैं कि आप कहां से हैं और कहां से शुरुआत कर रहे हैं। हम में से हर एक कहीं न कहीं तो शुरुआत करता ही है।
दरअसल, पोलर प्रीत के नाम से पहचानी जाने वाली हरप्रीत ने अपने साहसिक अभियान की शुरुआत नवंबर, 2021 में की थी। वह सात नवंबर को चिली रवाना हुई, जिसकी शुरुआत उन्होंने दक्षिणी ध्रुव के प्रवेश द्वार हरक्यूलिस इनलेट से अकेली की। यह यात्रा आसान नहीं थी। उसे अपने सामान के लिये नब्बे किलो वजनी स्लेज गाड़ी खींचनी थी, जिसमें करीब डेढ़ माह का भोजन, ईंधन व जरूरी उपकरण भी शामिल थे। इस दुर्गम इलाके में शेष दुनिया से संपर्क के बिना रहना निस्संदेह, बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। लेकिन उसने ढाई वर्ष की तैयारी में जो जी-जान से मेहनत की, उसने यात्रा का निष्कंट मार्ग प्रशस्त किया। उसने अभियान के लिये फंड जुटाया। इस अभियान के लिये फ्रांस के आल्प्स पर्वत शृंखलाओं की बर्फीली दरारों में दक्षिणी ध्रुव की परिस्थितियों के अनुकूल ढलने के लिये कठोर प्रशिक्षण लिया। साथ ही आइसलैंड के ग्लेशियर पर ट्रैकिंग भी की। कठिन साधना के लिये ग्रीनलैंड के बर्फीले इलाके में करीब एक माह का समय लगाया।

साथ ही बर्फ पर भारी-भरकम स्लेज गाड़ी को खींचने का अभ्यास अपनी पीठ पर टायर बांधकर किया। कहते हैं आग में तपकर ही सोना निखरता है, हरप्रीत ने भी कठोर अभ्यास से खुद को दक्षिणी ध्रुव की कठिन परिस्थितियों के अनुकूल ढाला। दक्षिणी ध्रुव से लौटने के बाद हरप्रीत चंडी अपने मंगेतर डेविड जारमैन के साथ नई जिंदगी शुरू करने वाली हैं।

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