Sunday, September 8, 2024
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वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों ने हर तरह की आपदाओं में होने वाली जान-माल की क्षति कम करने के उपायों पर किया गहन मंथन

देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देर शाम इस वैश्विक सम्मेलन में पहुंच कर दुनिया भर से आये विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों से मुलाकात की। ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के सिल्वर जुबली कनवेंशन सेंटर में आयोजित इस चार दिवसीय विश्व स्तरीय सम्मेलन में आज का प्रथम सत्र काफी महत्वपूर्ण रहा। आपदा प्रबंधन पर विश्व स्तर के सबसे बड़े सम्मेलनों में से एक छठे विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन के इस सत्र में हिमालय में लचीलापन और सतत विकास के पर वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञ ने विचार व्यक्त किएप् वहीं, द्वितीय सत्र में देश के विभिन्न राज्यों, जो कि आपदा ग्रसित होते रहते हैं, को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की गई तथा साथ ही वैश्विक स्तर तक क्षमता निर्माण के पर विशेषज्ञों ने विशेष रूप से अनुभव और विचार साझा किए। अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में तकनीकी सत्र भी रखे गए , इनमें क्षमता निर्माण को वैश्विक रणनीति का हिस्सा बताया गया। विशेषज्ञों ने कहा कि शोध हमारे लिए जितने महत्वपूर्ण हैं और उनका कार्यान्वयन भी उतना ही अहम है। वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने विषम हालात में परिस्थितियों से खुद को बचाने, हिमालय क्षेत्र में विकास के महत्व को समझने, एकीकृत तरीके से ग्लेशियर के प्रभाव, उनके विभिन्न पहलुओं को समझ कर कदम उठाने चाहिए, जैसे अहमतरीन सवालों के जवाब भी सुझाये। इस महासम्मेलन में आपदाओं से निपटने की तैयारी पहले से करने को क्षति कम करने के लिए बहुत प्रभावी बताया गया।
टेक्निकल सत्र में विरासत और जलवायु के लिए नेट शून्य, सामुदायिक स्वास्थ्य, लचीलापन और तैयारियों पर पैनल चर्चा के साथ ही टर्की, सीरिया, मोरक्को, अफगानिस्तान, नेपाल और हैती के आपदा क्षेत्रों में मियामोटो के अनुभव से सबक लेने, ताप कार्य योजना, मानवीय सहायता और आपदा राहत में भारतीय सशस्त्र बलों की भूमिका, पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र में स्थायी प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए जलवायु, लचीली प्रौद्योगिकियों, जलवायु परिवर्तन से प्रेरित आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर मंथन किया गया। सम्मेलन में आज तीसरे दिन के प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ.पेमा ग्याम्त्शो (आईसीआईएमओडी, नेपाल) ने कहा कि पहाड़ सुलभ हैं और वे हमें देश की सामाजिक अर्थव्यवस्था को बढ़ाने की सीमांतता और नाजुकता के बारे में भी बताते हैं और भविष्य में होने वाली भिन्न-भिन्न आपदाओं को और करीब से समझ कर उसका समाधान करने की महत्ता और तीव्रता का अहसास कराते हैं।

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