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Sunday, October 6, 2024
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नेपाल पर क्यों मेहरबान है चीन?

विकास कुमार

भारत और चीन एशिया की सबसे बड़ी शक्तियां है अगर विश्व परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो लगभग विश्व की एक तिहाई से अधिक जनसंख्या भारत और चीन में निवास करती है ।वैश्विक अर्थव्यवस्था में  भी दोनों का योगदान है । परन्तु दोनों के मध्य सदैव गतिरोध , विरोध और कूटनीतिक राजनय के खेल चलाते रहे है।
चीन की इस समय हकीकत बढ़ती ही जा रही है , कोरोना के नैतिक जिम्मेदारी ना लेने और भडक़ाऊ बयानों के वजह से कुछ दिनो तक उसकी हालत ठीक नहीं थे इसलिए वह चुप भी रहा , उसका कारण अपनी घरेलू नीतियों में संलिप्तता थी । यूरोप और अमेरिका से नकारे जाने के पश्चात वह अपने कदम एशिया में जमाना चाहता है , क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने उसके कई आयात और निर्यात वस्तुओं पर शुल्क में बढ़ोतरी की और भाई जितने भी चीन के प्रति कड़ा रुख अपना रखा है । एशिया में प्रभुत्व जमाने में उसके मार्ग का बाधक सिर्फ भारत है, क्योंकि अधिकतम अन्य एशियाई देश या उसके कर्ज में है , या उनका अधिकतम क्षेत्र पट्टे में लिए या विकास के नाम पर लुभावने सरंचनाओं के निर्मित  आधारों को जोडक़र और आज उसने विश्व के 150 देशों में लगभग 375 लाख करोड़ रुपए का कज़ऱ् बांट रखा है । हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वार्षिक रिपोर्ट बिजनेस इकोनॉमिक रिव्यू और जर्मनी कील  यूनिवर्सिटी  की वर्ल्ड इकोनॉमिक रिव्यू के अनुसार चीन ने इतना पैसा बांट रखा है जितना कि वर्ल्ड बैंक और आई. एम.एफ ने भी नहीं दिया । नेपाल के साथ भी चीन का यही हाल है ।

आज लगभग 120 टन माल प्रतिदिन चीन से नेपाल जाता है । 2019 में जब  12 अक्टूबर को शी जिनपिंग नेपाल गए उस समय 56 अरब डॉलर की आर्थिक मदद भी दिया। उसी समय नेपाल ने उसके बेल्ट रोड इनिशिएटिव का समर्थन भी कर दिया था । नेपाल के तरफ ज्यादा रुख करने का आशय यह है कि वह भारत का प्राकृतिक मित्र , आपदाकालिक,और वैश्विक राजनय में समर्थक रहा है । उसने अपनी पहली हकीकत भूटान में दिखाई परन्तु नाकाम रहा, क्योंकि उसने खुलकर भारत का समर्थन किया और सदैव उसके पक्ष में अपने को बनाए रखा ।
नेपाल और चीन का प्रमुख दो मार्गों से व्यापार होता है ,पहला है रासुवगढ़ी और दूसरा है, तातोपाड़े झामरू इन दोनो मार्गों का बखूबी प्रयोग चीन करते हुए अपने सस्ते परन्तु काम टिकाऊ वस्तुओं से , वहां के ना सिर्फ सरकार बल्कि जानता का समर्थन भी खींच रहा है । के0पी0सरकार पूरी तरह से चीनी निवेश के पक्षधर है ,परन्तु यह नहीं देखते कि वर्तमान में प्रत्येक नागरिक पर लगभग 44 रुपए ,498पैसे का कज़ऱ् ( उसके नागरिकों पर) है । इसका कारण चीनी निवेश है, क्योंकि उसके निर्मित वस्तुओं के समक्ष उनका स्थानीय माल टीक ही नहीं पा रहा है  और वहां के नागरिकों के द्वारा निर्मित वस्तुएं उनके समक्ष टिक ही नहीं पाती है , क्योंकि उसके निर्मित वस्तुओं इसने सस्ते होते है कि स्थानीय लोग भी स्थानीय पसंद नहीं करते और न खरीदते है, सबसे व्यापारिक कूटनीति चीन की यही होती है कि जिस देश में पहुंच बनाया , बेरोजगारी आ जाती है । आज जिबूती जैसे देश का हाल यह है कि उसके जी. डी.पी.का 77 प्रतिशत  आर्थिक योगदान केवल चीन का होता है । अफ्रीकन देशों के प्रमुख खानों और अन्य जगहों पर उसका प्रभुत्व है और सबसे अधिक वहीं देश कज़ऱ् में भी है । आज नेपाल के घरेलू नीति और सरकार को लेकर चहल -पहल चल रहा है। इस अवसर का भी चीज बखूबी फायदा उठा रहा है। ओली सरकार को कई बार सियासी संकट का सामना करना पड़ा। केपी शर्मा ओली प्रतिनिधि सभा में विश्वासमत हारने के बाद भी अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे थे।

विद्या देवी भंडारी ने उनकी सिफारिश पर 5 महीने में दूसरी बार 22 मई को प्रति सभा को भंग कर दिया था और देश में 12 तथा 19 नवंबर को चुनाव कराने का ऐलान भी किया था। परंतु पुन: खडक़ प्रसाद ओली को प्रधानमंत्री बना रहने दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर संज्ञान लेते हुए उसके कई मंत्रियों नियुक्तियों को असंवैधानिक बताया। चीन इस अवसर का बखूबी फायदा उठा रहा है , क्योंकि वर्तमान ओली सरकार का पूरा झुकाव चीन की ओर है। नेपाल चीन के लिए सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि नेपाल तक पहुंच बनाने से उसकी पहुंच भारत तक हो जाएगी।
नेपाल की सरकार को इन तथ्यों से अवगत होना चाहिए । नेपाल से कई नदियां प्रवाहित होकर भारत से गुजर कर अन्य जगह जाती हैं। भविष्य में नेपाल में कई प्रकार के बिजली उत्पादन के निवेश के नाम पर चीन भारत में प्रवाहित होने वाली नदियों में बांध और बिजली उत्पादन के कार्य कर सकता है।  नेपाल की अधिकतम सीमाएं भारत से मिलती है । वह भारत का मित्र रहा है । इन आंकलनों को देखकर चीन का रुख उसकी तरफ है । तिब्बत , हांगकांग और पाकिस्तान सभी हिस्सों पर किस तरह अधिकार क्षेत्र जमा रहा है । दूसरा नेपाल एक शांतिप्रिय और मानववादी देश रहा है । 23वर्षों के पश्चात शी जिनपिंग नेपाल गए थे । उसी समय डॉक्टभट्टाचार्य ने इसे ऐतिहासिक दौर बताया ।जो प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलाहकार है । चीन के विदेश मंत्री वांग यी  का यह कथित बयान है कि अपने 5000 हजार साल के इतिहास में चीन ने आक्रामकता और विस्तारवादी नीति नहीं अपनाई है और नहीं उसके जीन में साम्राज्यवाद है । वहीं नेपाल के प्रधानमंत्री कहते है , चीन से सीखना चाहिए की कैसे इतने कम समय में गरीबी से बाहर लोगों को निकाला । अत: दोनो देशों के सोंच और हित एक से दिख रहे है । दोनो देशों के मध्य 14 सूत्रीय समझौते में तो नेपाल और अधिक निवेश का शिकार हो गया है ।इसमें एक समझौता यह भी है कि तिब्बत से ग्योरोत पोर्ट को और काठमांडू के मध्य सडक़ बनेगी और उसका निर्माण चीन द्वारा किया जायेगा ।

इन अवयवों से नेपाल भारत से अपना रिश्ता ही नहीं बल्कि व्यापारिक सम्बन्ध भी छोडऩा चाहता है , परंतु कुछ आवश्यक वस्तुएं ऐसे है जिनको केवल भारत ही निर्यात कर सकता है। इस कारण से नेपाल पूर्णतया भारत से आयात बंद नहीं कर रहा। कई मामलों में यह भी देखा गया है कि वह 1950 की सभी को ना मानने के लिए भी कहता है। उसका तर्क रहता है कि वह समय और परिस्थिति के अनुसार किया गया था ।
भारत के लिए नेपाल बहुत महत्वपूर्ण है और नेपाल के लिए भारत । चीन को सडक़ निर्माण करना है और अपने सामान के लिए बाजार सलाशनी है इसलिए वह नेपाल पर मेहरबान है । आज अधिकतम देशों में चीन के वस्तुओं का बहिष्कार हो रहा है । ऐसे में वह अपना बाजार कहीं ना कहीं तो ढूंढेगा , नेपाल उसे सस्ता विकल्प मिल रहा है। जो सीमाई दृष्टि से भी उसके लिए जरूरी है, क्योंकि उसकी पहुंच सीधा भारत के अरुणाचल प्रदेश और अन्य  जगहों पर भी हो जाएगी। भारत के तराई क्षेत्र पर निवास करने वाले बहुत से नागरिकों के पीने का पानी नेपाल से प्रवाहित होने वाली नदियों से मिलता है। इस तथ्य को भी स्मरण रखना चाहिए। भारत और नेपाल के बीच लोगों से लोगों के बीच संबंध भी पाया जाता है जिसमें आवागमन पर छूट दी गई है। अगर चीन हस्तक्षेप नेपाल में अधिक बढ़ कर रहा है तो इस तथ्य को भी स्मरण में रखना चाहिए। नेपाल की सरकार को इस बात को ध्यान रखना चाहिए कि भारत नेपाल का सनातनी मित्र रहा है और भारत में सदैव नेपाल के हित में कार्य किया है।
( लेखक केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के राजनीतिक विज्ञान विभाग में रिसर्च स्कॉलर हैं)

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