Sunday, September 8, 2024
Home उत्तराखंड पतंजलि विश्वविद्यालय-हरिद्वार से 894वीं कथा का हुआ आरंभ

पतंजलि विश्वविद्यालय-हरिद्वार से 894वीं कथा का हुआ आरंभ

हरिद्वार। बाबा रामदेव की सन्यास दीक्षा के महोत्सव के उपलक्ष में सीमित श्रोताओं के सामने पतंजलि विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम हरिद्वार से,क्रम में 894वीं रामकथा का प्रारंभ इन बीज पंक्तियों से हुआ। रामकथा के आरंभ के अवसर पर बाबा रामदेवजी ने पतंजलि योगपीठ और पतंजलि परिवार की ओर से बापू का अभिवादन करते हुए कहा कि बापू ञुषी परंपरा के और देव परंपरा के प्रतिनिधि है। केवल व्यक्ति नहीं व्यक्ति विशेष है।। और आज 10 करोड़ से ज्यादा लोग किसी न किसी माध्यम से रामकथा को जीवंत सुन रहे हैं।।
पहले दिन की कथा प्रारंभ पर बापू ने बताया कि परमात्मा की असीम और अहेतु कृपा से नव संवत्सर और दुर्गा पूजा-चैत्र नवरात्र पर परम पावन स्थान पर और समस्त दिव्य चेतनाओं और बाबा जी एवं आचार्य और गुरुकुल के सभी छात्र के बीच में कथा का प्रारंभ कर रहे हैं।।वैसे यह कथा गत वर्ष होनी थी,कुंभ के अवसर पर। लेकिन कहीं और स्थान पर हुई और गत कथा में मानस योगसूत्र लिया था इस बार कौन सा विषय चुने?क्योंकि मैं पतंजलि भगवान की छत्रछाया में और बाबा आपकी यह माया नहीं छाया है एक साधु की छांव है और बहुत बड़ा गुरुकुल होने जा रहा है तो मानस गुरुकुल और गुरुकुल विचार को लेकर संवाद करने जा रहा हूं।। बापू ने बताया कि गुरुकुल कैसा होता है, कैसा होना चाहिए और गुरुकुल शब्द बोलने पर कितने नजारे सामने आते हैं।प्राचिन गुरुकुल कैसे थे आज के गुरुकुल और भविष्य में सनातनी परंपरा के गुरुकुल कैसे होने चाहिए यह सब नजरिये आये दिन कथा का संवाद करेंगे।। बापू ने कहा कि बाबा ने हमें सर्टिफिकेट दिया है कि आप फिट हैं ।और हमारा भारत का सौभाग्य है एक नाचता हुआ,गाता हुआ और खुलकर हंसता हुआ सन्यासी हमें मिला है।। बाबा ऑल इन वन है और इस पवित्र स्थल पवित्र सदप्रवृत्ति के लिए एक विधान करने जा रहा हूं। ऐसे विश्राम दाई विकास हो रहा है।विकास विश्रामदाई ना हो तो संताप के सिवा कुछ नहीं रहता।। बाबा का जो विजन है,पर्सनली रिजनलेस विझन है। भारत का भविष्य दिव्य दिखता है। और यह दोनों पंक्तियां बालकांड की है। हमारे यहां विद्या प्राप्त करने के लिए गुरुकुल में जाना पड़ता है। मूलतः वेदविद्या,योगविद्या, ब्रह्माविद्या और अध्यात्मविद्या स्तंभ है।। भगवान राम ब्रह्मा विद्या के साक्षात मूर्तिमंत विग्रह है।ब्रह्मा विद्या सदैव परमार्थिक होती है।जो स्वार्थ के लिए होती है वह भ्रम विद्या है।।योग विद्या का साक्षात विग्रह है भरत जी। यह विधान करने जा रहा हूं क्योंकि रामचरितमानस रहस्यमई ग्रंथ है।

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