देहरादून। देश परिवर्तन के मुहाने पर है। आयुर्वेद चिकित्सा पूरी दुनिया में परचम लहरा रही है। ऐसे में इस पारंपरिक चिकित्सा की मदद से विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करना होगा। आयुर्वेद चिकित्सकों पर इसकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। यह बात राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि.) ने कही। शुक्रवार को राज्यपाल उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। उन्होंने 1,698 छात्र-छात्राओं को उपाधि देने के साथ ही विभिन्न विषयों में सर्वाेच्च अंक प्राप्त करने वाले 112 मेधावी छात्र-छात्राओं को गोल्ड मेडल प्रदान किए। उन्होंने विवि की वार्षिक प्रगति विवरणिका ‘ब्रह्यकमल’ का भी विमोचन किया। राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखंड आयुर्वेद की भूमि है। यहीं से आयुर्वेद का उद्गम हुआ है। यहां हिमालय के विशाल और उन्नत शिखरों में अत्यंत दुर्लभ जड़ी-बूटियां विद्यमान हैं। यह हम सब की जिम्मेदारी है कि पूरे विश्व में आयुर्वेद को पहुंचाने का कार्य करें। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद आज के समय की मांग है। आयुर्वेद के सहयोग से हम आर्थिकी में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
दीक्षांत समारोह में पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि आयुर्वेद को भारत के साथ ही पूरी दुनिया में पहुंचाने की जरूरत है। गंगा, आयुर्वेद, योग का जन्म उत्तराखंड में हुआ है जो हम सब के लिए गर्व का विषय है। युवा पीढ़ी तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार में अपना हर संभव योगदान दें। निशंक ने कहा कि कोरोना काल के दौरान पूरे देश में आयुर्वेदिक दवाओं का 30 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार हुआ है, जिससे साबित होता है कि आयुर्वेद के प्रति लोगों में रुझान बढ़ा है। दीक्षांत समारोह में पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति भारत की पहचान है। आयुर्वेद भारत समेत पूरी दुनिया में फैले इसके लिए इसके उत्थान और कल्याण के लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। जिसकी जिम्मेदारी आयुर्वेद चिकित्सकों पर है।
1,698 छात्र-छात्राओं को प्रदान की उपाधि, 112 मेधावी छात्रों को गोल्ड मेडल देकर सम्मानित किया
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