मसूरी। चैत्र मास की के रूप में उत्तराखण्ड का नया साल शूरू होता है। घोघा माता के पूजन से जहाॅ प्रकृति की होली का आगाज होता है वहीं यह एक मात्र यह ऐसा त्योहार है जो पूर्ण रूप से बच्चों को समर्पित है। इसी परम्परा को बखूबी से प्रदर्शित करता है यह गढ़वाली एलबम गीत ‘फूलदे ल्हेक चैत ऐगे, लैगे नयो साल’, जो आज रिलीज हुआ।
मार्च महीने के मध्य से प्रारम्भ होने वाले चैत्र मास की पहली गति (तारीख़) से बच्चे प्रातः काल में उठकर नाना प्रकार के खूबसूरत फूल गुच्छ को लोगों के घरों की देहरी में बिखेर आते हैं और साथ ही गीत गाकर उस घर की सुख समृद्धि की कामना प्रकृति की देवी घोघा माता से करते हैं । साथ ही देहरियों को पूजने और उसे पवित्र करने की महान रश्म है। फूलदेई के रूप में घोघा माता पूजन का यह विश्व का एक मात्र ऐसा अनूठा पर्व है जो केवल देवभूमि उत्तराखण्ड में ही मनाया जाता है।
उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र में यह पर्व कहीं 1 से 8 गते तक मनाया जाता है तो कहीं कहीं पूरे मास मनाया जाता है। आम तौर पर अठवड़ू (अष्ठमी) को घोघा माता के विधिवज पूजन प्रसाद वितरण और भोग के साथ इस त्योहार का समापन होता है। पूजा कुमांऊ में मुख्य रूप से संक्रांति के दिन फूलदेई के रूप में यह त्योहार वृहद स्तर पर मनाया जाता है।
गढ़वाली एलबम गीत ‘फूलदे ल्हेक चैत ऐगे, लैगे नयो साल’ रिलीज
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