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उत्तराखंड

नवसृजन ने शहीद जगदीश वत्स का स्मरण कर किया प्रतिभाओं का सम्मान

रुड़की। साहित्यिक संस्था नवसृजन द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव के तहत स्वतंत्रता दिवस की पूर्व बेला पर आजाद नगर स्थित ज्योतिबा फुले धर्मशाला में कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता शिक्षाविद डॉ मधुराका सक्सेना ने की जबकि मुख्य अतिथि स्कॉलर्स एकेडमी के चेयरमैन श्याम सिंह नागयान रहे। संस्था के वरिष्ठ संरक्षक सुबोध पुंडीर सरित की सरपरस्ती व किसलय क्रांतिकारी एवं पंकज त्यागी के संयुक्त रुप संचालन में मां सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की गई। वरिष्ठ कवि राम शंकर सिंह ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।
शामली से ओज कवि योगेन्द्र सुंदरियाल, देहरादून से कवयित्री डा. आरती रावत पुण्डीर, कानपुर से कवयित्री डा. अंजना कुमारी, श्रीनगर गढ़वाल से माधुरी नैथानी के साथ ही नव सृजन संस्था के रचनाकारों सुबोध कुमार पुण्डीर सरित, सुरेन्द्र कुमार सैनी, सौ सिंह सैनी,नवीन शरण निश्चल, अनुपमा गुप्ता, किसलय क्रांति कारी, पंकज त्यागी असीम, विकास चैधरी, मधुराका सक्सेना घनश्याम बादल, श्रीगोपाल नारसन, योगाचार्य श्रीराम, नीरज नैथानी आदि ने काव्य पाठ किया। कवि सम्मेलन में देश भक्ति की रचनाओं के साथ ही राष्ट्र वंदना के स्वर गुंजते रहे।इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए तीन विशिष्ट विभूतियों शिक्षा के क्षेत्र में बाबू आशाराम राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ग्राम डाडा जलालपुर के प्रधानाचार्य रघुवीर सिंह पंवार,समाज सेवा व पत्रकारिता के लिए श्रीगोपाल नारसन तथा साहित्य के क्षेत्र में नीरज नैथानी को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। आरती पुण्डीर कहा, ए खुदा इल्तजा है तुझसे ऐसी खुदाई मत देना वतन की माटी से रहूं दूर ऐसी जुदाई मत देना।।
सुबोध पुंडीर सरित का कहना था, देशद्रोह के षड़यंत्रों को करना नंगा है, हर घर- हर कर में लहराता मुक्त तिरंगा है। नवीन शरण निश्चल के शब्दों में, अब शहीदों से ही हम अनजान बनकर रह गए हैं, वो तिरस्कारों का अब सामान बनकर रह गए हैं। माधुरी नैथानी के बोल थे, मैं कोयल संग गाया करती हूं मैं मकरंद लुटाया करती हूॅं। नीरज नैथानी ने मिश्र की नील नदी पर केंद्रित रचना सुनाई तो डा. घनश्याम बादल ने पढ़ा, बेशक, हर घर पर तिरंगा फहराएंगे हम, बेशक, उसे आसमान तक लहराएंगे हम, पंकज त्यागी ने बयां किया, मुस्तैद सीमा पे है वो सर्दी में धूप में हम लोग कर्जदार हैं हर एक जवान के।

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