देहरादून। हिमवंत कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल की 104वीं जयंती पर उत्तरांचल प्रेस क्लब की ओर से उनका भावपूर्ण स्मरण किया गया। वक्ताओं ने कहा कि चंद्रकुंवर बर्त्वाल ने अपने अल्प जीवन में हिंदी कविता को जो ऊंचाइयां दीं, वह अपने आप में अद्वितीय हैं। प्रकृति का जैसा चित्रण उनकी कविताओं में हुआ है, वैसा अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। अस्वस्थ होने के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर लखनऊ से वापस अपने गांव लौटना पडा़। जीवन के अंतिम छह साल उन्होंने अपने गांव मालकोट के पास पंवालिया में बिताए। इसी अवधि में उन्होंने अपनी कालजयी कृतियां रचीं।
चंद्रकुंवर जानते थे वह अधिक नहीं जी पाएंगे, लेकिन विवशता का यह भाव उन्होंने अपनी रचनाओं में नहीं आने दिया। उन्होंने अपने अल्पजीवन को प्रकृति का उपहार माना और कष्ट सहते हुए भी कविताओं के रूप में प्रकृति के ऋण से उऋण होने का प्रयास किया। वक्ताओं ने इस बात पर अफसोस जताया कि प्रकृति के इस चितेरे कवि को साहित्य जगत में वह स्थान नहीं मिला, जिसके वे वास्तविक हकदार थे। उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उन्हें जानने का प्रयास करें और उनकी कालजयी रचनाओं से भविष्य की पीढी़ को परिचित कराएं। इस मौके पर प्रसिद्ध जनकवि डा.अतुल शर्मा ने प्रकृति के भावों को उजाकर करती अपनी कविताओं के माध्यम से चंद्रकुंवर बर्त्वाल को श्रद्धासुमन अर्पित किए।
हिमवंत कवि चंद्रकुंवर बत्र्वाल की याद में प्रेस क्लब ने आयोजित की गोष्ठी
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