हरिद्वार/देहरादून। आज मनुष्य अपने ड्राइंग रूम की दीवारों पर गौरैया और अन्य पशु पक्षियों की फोटो व पेंटिंग तो लगा रहा है परंतु जब बात जमीनी स्तर पर गौरैया संरक्षण की आती है, तो हमारा उत्साह कमजोर पड़ने लगता है। यह मार्मिक संदेश गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रूप किशोर शास्त्री ने दिया। गुरुकुल विश्वविद्यालय के आउटरीच कार्यक्रम के अंतर्गत कनखल स्थित स्वामी हरिहरानंद स्कूल में गौरैया संरक्षण विषय पर आयोजित जन जागरूकता कार्यक्रम में प्रोफ़ेसर शास्त्री बतौर कार्यक्रम अध्यक्ष उपस्थित थे। प्रोफेसर शास्त्री ने कहा कि आज मानव विज्ञान के आविष्कारों से एक ओर जीवन को सुख सुविधाओं से युक्त बना रहा है तो वहीं दूसरी ओर तकनीकी से निर्मित खतरनाक हथियार वायुमंडल से ऑक्सीजन और धरती से जीवन छीन रहे हैं। प्रोफेसर शास्त्री ने प्रश्न किया कि यह कैसा विकास है और मानव की इस बौद्धिक क्षमता को आखिर क्या नाम दिया जाए। प्रोफेसर शास्त्री ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज अगर हमारे आंगन की गौरैया सुरक्षित नहीं है तो हमारे स्वयं की सुरक्षा स्वतरू ही प्रश्नचिन्ह तो हो जाती है। प्रोफेसर शास्त्री ने प्रतिभागियों से अपील की कि वे प्रकृति के साथ निकटता एवं समन्वय बनाए अन्यथा हमें हमारी भावी पीढ़ियां कभी माफ नहीं करेंगी।
विश्व गौरैया दिवस कार्यक्रम के संयोजक व अंतरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने गौरैया पर शोधपरक जानकारी प्रस्तुत की। प्रोफ़ेसर भट्ट ने बताया कि उनकी शोध टीम उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश एवं सिक्किम के विभिन्न फील्ड स्टेशन पर गौरैया के लिए निरंतर शोधरत है। प्रोफ़ेसर भट्ट ने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से बताया कि अधिकांश शहरी क्षेत्रों में गौरैया की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है, हालांकि पर्वतीय एवं ग्रामीण अंचलों में अभी भी गौरैया की स्थिति इतनी चिंतनीय नहीं है। प्रोफ़ेसर भट्ट ने जानकारी दी कि शहरी क्षेत्रों में हरित आवरण व झाड़ियों का अभाव गौरैया के लिए संकट पैदा कर रहा है। उन्होंने बताया कि पेड़ पौधों पर मिलने वाले विभिन्न कीटों से गौरैया अपने बच्चों का पेट भरती है तथा उन झाड़ियों के अंदर वह रात्रि विश्राम करती है, परंतु हरित क्षेत्र की कमी से गौरैया का अस्तित्व प्रभावित हो रहा है।
कीटों का भक्षण कर पर्यावरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है गौरैयाः डा. भट्ट
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