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उत्तराखंड

2000 से विधानसभा में जो भर्तियां प्रारंभ हुई तब से लेकर अब तक समदृष्टि से जांच होनी चाहिएः माहरा

देहरादून। उत्तराखण्ड विधानसभा अध्यक्ष द्वारा 2016 के उपरान्त विधानसभा में हुई भर्तियों को निरस्त करने के निर्णय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने जो कारवाई करने की बातें कहीं हैं वह न्याय नहीं है, कांग्रेस की लड़ाई किसी को उसकी नौकरी से अपदस्थ करने की नहीं थी, कांग्रेस पार्टी पहले दिन से यह कहती आ रही है 2000 से विधानसभा में भर्तियां प्रारंभ हुई है तब से लेकर अब तक समदृष्टि से जांच होनी चाहिए।
साथ ही कांग्रेस ने यह भी कहा था जिन नेताओं ने अपनी नैतिकता का परित्याग करते हुए जनता को धोखे में रखा और प्रदेश की जनता के साथ छल किया उनके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए, जनता ने जिन पर भरोसा किया उन्होंने अपने परिजनों, रिश्तेदारों और चहेतांे को विधानसभा में बैकडोर से नियुक्तियां करते हुए विशेषाधिकार का हनन किया और आज उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हो रही है। यह महत्वपूर्ण है साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि शासन स्तर के जिन अधिकारियों की संलिप्ता इस प्रकरण में रही है उनके खिलाफ क्या कार्रवाई होगी?
दूसरी ओर जो जांच समिति बनी है उन को चुनौती दी जाएगी क्योंकि हमारा मानना है कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा की गई कार्यवाही की जांच कोई आईएएस अधिकारी नहीं कर सकता हितसाधको को इस बात का लाभ कोर्ट में मिलेगा कि विधानसभा अध्यक्ष के कार्यों की जांच किसी भी अधिकारी, कर्मचारी से नहीं कराई जा सकती और जिन नेताओं वा रसूखदार लोगों ने अपने परिजनों की विधानसभा में नौकरी लगवाई है उनके खिलाफ क्या कार्रवाई होगी यह हमारा बड़ा प्रश्न है साथ ही कांग्रेस पार्टी का उद्देश्य किसी को नौकरी से हटाना नहीं है अपितु भ्रष्ट नौकरशाहों व नेताओं को जनता के सामने एक्सपोज करना है लोगों ने अपने रसूख अपनी ताकत अपनी हैसियत का इस्तेमाल करते हुए जनता को छलने का काम किया और अपने चहेतों को बैकडोर के माध्यम से नौकरियां दिलाने का अनैतिक काम किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी लगातार मांग करती आ रही है कि चूंकि विधानसभा एक संवैधानिक संस्था है तथा इसके चलते कमेटी की जांच मे यह सुनिश्चित किया जाना नितांत आवश्यक है कि विधानसभा में हुई भर्तियों मे कानून का पालन होने के साथ-साथ नैतिकता का पालन किया गया है अथवा नहीं तथा इन भर्तियों की जांच जनहित में होनी चाहिए। साथ ही विधानसभा में हुई सभी प्रकार की भर्तियों की जांच वर्ष 2012 के उपरान्त नहीं अपितु वर्ष 2000 से की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मा0 विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय में यह स्पष्ट नहीं है कि उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जायेगी जो इसके लिए दोषी हैं।

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