Monday, May 6, 2024
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शैक्षिक सुधार खोलेंगे रोजगार के द्वार

भरत झुनझुनवाला

केंद्र सरकार का कहना है कि 2018 में प्रोविडेंट फंड की सदस्यता लेने वाले श्रमिकों में 70 लाख की वृद्धि हुई है लेकिन प्रोविडेंट फंड की सदस्यता में वृद्धि और रोजगार में वृद्धि दो अलग-अलग बाते हैं। 2018 का समय नोटबंदी और जीएसटी का था। इन नीतियों के कारण छोटे उद्योग कम हुए थे और बड़े उद्योग बढ़े थे। छोटे उद्योग ही ज्यादा रोजगार बनाते थे। इसलिए यदि छोटे उद्योगों में 100 कर्मी बेरोजगार हुए तो हम मान सकते हैं कि बड़े उद्योगों में 50 रोजगार बने होंगे। कुल मिलाकर रोजगार में 50 की गिरावट आयी। लेकिन जिन 50 को रोजगार मिला, वे प्रोविडेंट फंड के सदस्य बने, चूंकि वे बड़े उद्योगों में कार्यरत थे। इसलिए प्रोविडेंट फंड की सदस्यता में 50 सदस्यों की वृद्धि हुई जबकि साथ-साथ कुल रोजगार में 50 श्रमिकों की गिरावट आई। इसीलिए केंद्र सरकार द्वारा किए गये सामयिक श्रम सर्वे में कहा गया कि 2012 एवं 2018 के बीच अपने देश में शहरी बेरोजगारी में तीन गुना वृद्धि हुई है। और गम्भीर विषय यह है कि यदि मान भी लें कि 2018 में 70 लाख नये रोजगार बने तो भी बेरोजगारी की समस्या का निदान नहीं होता क्योंकि अपने देश में हर वर्ष 120 लाख नये युवा श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं। इनमें से यदि 70 लाख को रोजगार मिल भी गया तो भी 50 लाख युवा बेरोजगार ही रह जायेंगे।

समस्या के गंभीर होने के दूसरे संकेत उपलब्ध हैं। केन्द्र सरकार द्वारा जारी किए गये उपरोक्त सामयिक श्रम सर्वे के अनुसार 2012 से 2018 के बीच शहरी बेरोजगारी की दर में 3 गुना वृद्धि हुई है। इसी सर्वे के अनुसार 2018 में अपने देश में 15 से 24 वर्ष के लोगों में 28.5 प्रतिशत बेरोजगार थे जो कि विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में अधिकतम था। इसी सर्वे के अनुसार 2012 से 2018 के बीच वेतन में भी गिरावट आई है। जैसे मान लीजिये आपका 2012 में वेतन 100 रुपये प्रति दिन था और 2018 में आपका वेतन 110 रुपये प्रतिदिन हो गया। वेतन में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई लेकिन मान लीजिये इसी अवधि में जो टॉफ़ी 2012 में 1 रुपये में मिलती थी, वह 2018 में 1.50 रुपये में मिलने लगी। ऐसा हुआ तो आपके वास्तविक वेतन में कटौती हुई। 2012 में आप एक दिन के वेतन में 100 टॉफी खरीद सकते थे। 2018 में एक दिन के वेतन में आपको केवल 55 टॉफी मिलेंगी, चूंकि वेतन में वृद्धि कम और टॉफ़ी के दाम में वृद्धि ज्यादा हुई है। इसलिए केंद्र सरकार द्वारा किए गये सर्वे में कहा गया कि 2012 से 2018 के बीच वास्तविक वेतन में 1.7 प्रतिशत की गिरावट आई है। अत: बेरोजगारी की समस्या को झुठलाने से काम नहीं चलेगा। इसके मूल कारणों का निवारण करना होगा।

बेरोजगारी की समस्या का प्रमुख कारण तकनीकी बदलाव है। जैसे पूर्व में बैंक में खाते क्लर्कों द्वारा रखे जाते थे। अब यह कार्य कम्प्यूटर से होने लगा है। बैंक की कई शाखाओं में केवल दो या तीन कर्मी काम करते हैं। कम्प्यूटर ने श्रमिकों की जरूरत को कम कर दिया है। लेकिन साथ-साथ बैंकों का प्रसार बढ़ा है और शाखाओं की संख्या बढ़ी है। इनमें नये रोजगार उत्पन्न हुए हैं। इतिहास पर गौर करें तो किसी समय यातायात का प्रमुख साधन घोड़ा-गाड़ी हुआ करता था। इसके बाद कार का आविष्कार हुआ, जिसके कारण घोड़ा-गाड़ी चलाने वाले बेरोजगार हो गये। लेकिन कार के चलन का विस्तार हुआ। इनके उत्पादन और मरम्मत में नये रोजगार बने। इनके लिए सडक़ और फ्लाईओवर बनाने में भी रोजगार बने। इसलिए घोड़ा-गाड़ी में रोजगार में गिरावट के बावजूद यातायात क्षेत्र में कुल रोजगार बढ़े। वर्तमान समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का खतरा हमारे सामने है। तमाम कार्य जैसे हड्डी में फ्रैक्चर को पहचानना अथवा खून की जांच करना अब कम्प्यूटर द्वारा किये जाने लगे हैं। ऐसा होने से रेडियोलॉजिस्ट और पैथोलाजिस्ट के रोजगार पर संकट आने को है। लेकिन जिस प्रकार घोड़ा-गाड़ी के समाप्त होने के बावजूद कार के चलन से कुल रोजगार में वृद्धि हुई; उसी प्रकार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से तमाम नये उत्पाद बन सकते हैं। जैसे आपके मनपसन्द प्लॉट का सिनेमा बनाना अथवा वीडियो मिक्स करना इत्यादि। अत: हमें अपने युवाओं को रोजगारों की इन नई संभावनाओं को पकडऩे को प्रशिक्षित करना होगा।

यहां प्रमुख समस्या हमारी शिक्षा व्यवस्था की है। वर्तमान में युवाओं का रुझान सरकारी नौकरियों की तरफ बना हुआ है, बावजूद इसके सरकारी नौकरियों की संख्या में कमी आई है। लेकिन सामान्य शिक्षा वाले प्राइमरी सरकारी स्कूल के टीचर को आज 50 से 70 हजार रुपये प्रतिमाह मिलता है जबकि एक ट्रेंड नर्स अथवा डाटा एंट्री आपरेटर को बमुश्किल 15 हजार रुपये प्रतिमाह मिलता है। इसलिए युवाओं को नर्स अथवा डाटा एंट्री आपरेटर की क्षमता हासिल करने में रुचि नहीं है। उनका पूरा ध्यान सरकारी नौकरी हासिल करने की तरफ रहता है। वास्तविक ‘शिक्षा’ ग्रहण करने में उनकी रुचि नहीं है। सरकार को चाहिए कि सरकारी कर्मियों और साधारण नागरिकों जैसे नर्स के वेतन के बीच संतुलन स्थापित करे, जिससे सरकारी नौकरी का मोह कम हो और हमारे युवा व्यावहारिक पढ़ाई पर ध्यान दें। इस दिशा में सरकार को प्राइमरी स्तर पर ही अंग्रेजी भाषा और कम्प्यूटर शिक्षा को अनिवार्य कर देना चाहिए, जिससे कि युवा आने वाले समय में कम्प्यूटर आधारित रोजगार, जैसे पुस्तकों का अनुवाद करना अथवा वीडियो मिक्स करना जैसे कार्यों को स्वयं कर सकें और अपनी जीविका अर्जित कर सकें।

हमें इस चिंता में नहीं रहना चाहिए कि अंग्रेजी को अपनाने से हमारी संस्कृति की हानि होगी। हमें ध्यान करना चाहिए कि किसी समय हमारी संस्कृति सिन्धु घाटी की भाषा में समझी जाती थी। इसके बाद वही प्राकृत भाषा में परिवर्तित हुई और फिर देवनागरी में। लेकिन संस्कृति की निरन्तरता कायम रही। इसलिए हमें प्रयास करना चाहिए कि अपनी संस्कृति का अंग्रेजीकरण करें जिससे कि हम अंग्रेजी भाषा में उत्पन्न होने वाले रोजगार भी हासिल करें और साथ-साथ अपनी संस्कृति का वैश्वीकरण भी कर सकें। यदि हम अपने वेद, पुराण तथा करपात्रीजी महाराज जैसे विद्वानों की टीकों को सुलभ अंग्रेजी में उपलब्ध करा दें तो हमारी संस्कृति का भी वैश्वीकरण होगा और युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। हमें भविष्य की ओर देखना चाहिए। इतिहास की उपयोगिता भविष्य को संवारने के लिए होती है। इतिहास का उद्देश्य कठघरे में जीवित रहने का नहीं होता है।
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।

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