Sunday, April 28, 2024
Home ब्लॉग संकट की दस्तक में आत्मबल का संबल

संकट की दस्तक में आत्मबल का संबल

सुरेश सेठ

लगभग दो बरस के बाद देश महामारी के दुर्भाग्य से उबरने लगा था। लगता था अब जिंदगी सामान्य हो जायेगी। पिछले बरस तो देश का अर्थतंत्र ही जैसे लडख़ड़ा गया। महामारी में लगे पूर्ण-अपूर्ण बन्दों के बाद सकल घरेलू उत्पादन में तेईस प्रतिशत आशातीत वृद्धि और व्यवस्था के स्वत: स्फूर्त हो जाने के सपने देखे जा रहे थे और कहां यह विकास दर लडख़ड़ा कर शून्य से नीचे जा ऋणात्मक सात प्रतिशत के आसपास पहुंच गयी।
परिणाम स्पष्ट थे, महानगरों में निवेश निरुत्साह हुआ। फैक्टरियों और मिलों ने सक्रियता का धुआं उगलना बंद कर दिया। सबसे बड़ा कुप्रभाव निर्धन और मध्य वर्ग पर पड़ा। उनकी बंधी-बंधाई नौकरियां छूट गयी, नया रोजगार कहीं था नहीं। देश में एक अजब विडम्बना पैदा हो गयी। बाजार में अतिरिक्त मांग नहीं थी, क्योंकि बेकार हो गये जनसमुदाय की जेब में पैसे नहीं थे और उधर मौद्रिक नीति के उदार तेवर अपनाने या सरकार द्वारा दो-दो आर्थिक बूस्टर जारी करने के बावजूद निवेश प्रेरित नहीं हुआ। आपूर्ति बाजारों से गायब रही, जो आयी वह काला बाजारों और चोर बाजारों का रुख करती रही, इसलिये महंगाई में अप्रत्याशित वृद्धि हो गयी।

दूसरी ओर विश्व सर्वेक्षणों ने बताया कि शुचिता और नैतिक मूल्यों के नारों के बावजूद भारत दुनिया के महाभ्रष्टाचारी देशों में अव्वल खड़ा है। सर्वेक्षकों ने बताया कि यह तो संपर्क देश या जनता के लिए अपना बनाम चिरौरी से करवाने वाला देश बन गया। रिश्वतखोरी एक ऐसी मान्य शार्टकट बन गयी कि ‘रिश्वत लेना और देना अपराध है’, देश के दफ्तरों में लगे ये सूचनापट निरर्थक हो गये।
बेकारी देश की बेबसी बन गयी। भारत को नौजवानों के बाहुल्य के कारण एक युवा देश कहा जाता है। लेकिन इस विकट काल में यह पीढ़ी भटकती और बेकार पीढ़ी बन गयी। खेतीबाड़ी देश का पुश्तैनी धंधा था, लेकिन इसका राष्ट्रीय आय में घटता योगदान और पहली कृषि क्रांति से पैदा असमर्थता ने गांवों की युवा पीढ़ी को अपना आश्रय देने से इनकार कर दिया। गांवों के युवक अपने परिवारों का निरर्थक बोझ बनने के स्थान पर एक वैकल्पिक और बेहतर जीवन जीने के लिए महानगरों की ओर चल दिये। अधिक स्वप्नजीवी वैध-अवैध तरीकों से विदेशों की ओर निकल गये। वहां गिरते हुए भारतीय रुपये के मूल्य के मुकाबले संपन्न देशों की अधिक मूल्यवान मुद्रा उन्हें तत्काल धनी, या अवधि के बाद स्वदेश लौटने पर त्वरित करोड़पति बना रही थी। इसलिए देश के कृषक समाज से नगरों और विदेशों की ओर पलायन की स्थिति पैदा हो गयी।

लेकिन तब अचानक आगमन हुआ भारत ही नहीं, पूरे विश्व में कोरोना के घातक वायरस का। इसी के कारण देश पहली लहर से संक्रमित हुआ, जिसने पूरे देश के उत्पादक ढांचे को छिन्न-भिन्न कर दिया। महानगरों में गांव से आ जमती नौकरियों के पांव उखड़े और विदेशों में आसरा तलाशते प्रवासी भारतीय बेगाने हो गये। कहा जाता है कि भारत विभाजन के समय जनता के अपने गांव-घरों से पलायन करते हुए इतनी समस्या पैदा नहीं हुई थी, जितनी कोरोना महामारी से अटपटा गये भारत की देशी-विदेशी श्रम शक्ति के समक्ष पैदा हुई।
अभी अनुभव किया जा रहा था कि कोरोना की दूसरी लहर का दबाव कम हो गया, देश में इसके मुकाबले के लिए टीकाकरण का ऐसा रिकार्डतोड़ अभियान चला कि न केवल यहां कोरोना की विदाई की बातें शुरू हो गयीं बल्कि इसने कोरोना की तीसरी लहर के पांव थाम दिये हैं। कहां तो कोरोना संक्रमण के लाखों केस प्रतिदिन आ रहे थे और कहां अब प्रतिदिन चंद हजार तक इनका आंकड़ा गिर गया।

लेकिन देश के विकासशील होने के सपने पर आघात नजर आने लगा। कोरोना का कई गुणा तेज घातक वायरस ‘ओमिक्रॉन’ जो पहले दक्षिणी अफ्रीका से उभरा था, वह जल्द ही आस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, इटली और जर्मनी भी पहुंच गया। यह सही है कि कोरोना के इस नये रूप ‘ओमिक्रॉन’ का संक्रमण अभी चंद भारतीय मरीजों को चपेट में ले चुका है लेकिन सामान्य जीवन जीने, नये उद्योग, नये काम धंधों और नया निवेश करने की इच्छा रखने वाले सक्रिय होते देश के पांव इससे ठिठक गये।
देश की स्टॉक एक्सचेंज मंडियां नये कोरोना संक्रमण की आशंका से धड़ाम से गिरी। स्वदेशी-विदेशी निवेशकों की उदासीनता रही। हां, सत्ताधीशों के स्तर पर देश ने इस विकट समय में भी तरक्की कर ली, ऐसी घोषणाओं की कमी नहीं रही। चमकता हुआ भारत, आत्मनिर्भर भारत और अच्छे दिनों की वापसी ऐसी दिलासा भरी घोषणायें थी, जिन्होंने अवसादग्रस्त दिलों के लिए एक उत्सव का सृजन कर दिया। गुरबत भरी आजादी में अमृत महोत्सव की हर्षातिरेक धर्मी घोषणा। आंकड़े नये सौभाग्य की सवेर सजाने लगे। आंकड़े कहते हैं कि भारत डिजिटल हो गया और इसके इंटरनेट क्षेत्र में नौकरियां खाली पड़ी हैं, काम के लिए नौजवान मिल नहीं रहे।

बेशक नहीं मिल रहे, क्योंकि बला की तेजी से देश ने डिजिटल हो जाने की घोषणा कर दी, नौजवानों के पास उचित प्रशिक्षण है नहीं, इसीलिए आसामियां खाली पड़ी हैं। शहर में कोरोना का दबाव घट जाने से और आम जिंदगी लौट आने से नौकरियों की उपलब्धता वही है, बेकारी की दर घटी है। लेकिन तनिक गांवों में शहरों से पलायन करके धरती मां से आसरा तलाशती उस लौटी पीढ़ी का भी ध्यान कर लो, जो कोरोना के लौट आने के भय से अभी गांवों में ही रुकी है और वहीं अपने जीवनयापन का आसरा तलाश कर रही है, जो उन्हें नहीं मिलता। ऐसे लोगों की संख्या करोड़ों बतायी जा रही है। सरकार ने इनके लिए लघु और कुटीर उद्योगों के विकास की घोषणा की है, उनके लिए पड़ोसी कस्बों में फसल प्रसंस्करण की औद्योगिक इकाई बनायी जायेंगी। उन्हें अपनी धरती से पुन: उखड़े लोगों को काम का आसरा मिल जायेगा। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं है। घोषणा होती है तो यही कि लाल रेखा के पीछे भी बड़े उद्योगपतियों को अपनी उद्यम इकाइयां स्थापित करने की इजाजत मिल गयी। जयघोष होता है, लघु कुटीर उद्योगों का, भारी संख्या में?एफपीओ स्थापित करने का, लेकिन भूख से मरता हुआ नौजवान इस विकास यात्रा में कहीं पैर रखने की भी जगह नहीं पाता। तभी तो अनियमित छोटे व्यापारी, फुटपाथी दुकानदार और रेहड़ी खोमचे वाले भी अपने आपको अधर में लटका पाते हैं। वे न इधर के रहे और न उधर के।

ऐसी अवस्था में एक ही समाधान नजर आता है कि विकास और अच्छे दिनों के लौटने के लिए समतावादी समाज की स्थापना की जाये। शीर्ष पुरुषों, सम्पदावानों और सदियों से धरती पर रेंगते वंचितों में?अंतर कम कीजिये। प्रजातान्त्रिक समाजवाद की स्थापना हो कि जिसका वचन आजादी के समय दिया गया था। सपना है आम आदमी का रोजी रोजगार लौटेगा, उसका वेतन और उसकी मांग बढ़ेगी। मन्दी के बादल छटेंगे। और देश के निवेशक फिर साहस की हंसी हंसेंगे। कोरोना के नये रूप का मुकाबला कर सकेंगे। क्योंकि अब तो देश में नये रिकार्ड बना देने वाले कोरोनारोधी टीकाकरण का सजल भी सबको मिल गया है। फिर आत्मबल भी तो बटोरना है, क्योंकि प्रगति मार्ग यहीं मिलेगा।
लेखक साहित्यकार एवं पत्रकार हैं।

RELATED ARTICLES

कमाल ख़ान के नहीं होने का अर्थ

मैं पूछता हूँ तुझसे , बोल माँ वसुंधरे , तू अनमोल रत्न लीलती है किसलिए ? राजेश बादल कमाल ख़ान अब नहीं है। भरोसा नहीं होता। दुनिया...

देशप्रेमी की चेतावनी है कि गूगल मैप इस्तेमाल न करें

शमीम शर्मा आज मेरे ज़हन में उस नौजवान की छवि उभर रही है जो सडक़ किनारे नक्शे और कैलेंडरों के बंडल लिये बैठा रहा करता।...

डब्ल्यूएचओ की चेतावनी को गंभीरता से लें

लक्ष्मीकांता चावला भारत सरकार और विश्व के सभी देश विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों, सलाह और उसके द्वारा दी गई चेतावनी को बहुत गंभीरता से...

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

वनाग्नि रोकथाम एवं मानसून सीजन को लेकर डीएम ने ली अधिकारियों की बैठक

देहरादून। जिलाधिकारी सोनिका ने वनाग्नि एवं आगामी मानसून सत्र के संबंध में ऋषिपर्णा सभागार में संबंधित विभागों के अधिकारियों के साथ बैठक करते हुए...

रॉबर्ट वाड्रा ने त्रिवेणी घाट पर की पूजा अर्चना, गंगा आरती में हुए शामिल

देहरादून। रॉबर्ट वाड्रा ऋषिकेश पहुंचे। रॉबर्ट वाड्रा ने त्रिवेणी घाट पर पूजा अर्चना करने के उपरांत वहां प्रतिदिन होने वाली आरती में प्रतिभा किया...

राज्यपाल ने आईआईएमयूएन के कार्यक्रम में प्रतिभाग किया

देहरादून। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने आईआईएमयूएन द्वारा राजभवन में आयोजित कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में विभिन्न स्कूलों के युवाओं...

उत्तराखंड में बिजली दरों में करीब सात प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई

देहरादून। उत्तराखंड में बिजली दरों में करीब सात प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। नियामक आयोग ने आज नई दरें जारी की। बीपीएल के...

Recent Comments