Friday, May 3, 2024
Home ब्लॉग भारतीय राजनीति के सच्चे कर्मयोगी बी.एन. मण्डल

भारतीय राजनीति के सच्चे कर्मयोगी बी.एन. मण्डल

गनेशी लाल

भारतीय राजनीति में अनेक विचारक हुए, बड़े-बड़े राजनेता हुए, राज किया और चले गए परंतु कुछ लोग ऐसे व्यक्तित्व के धनी रहे जिनको भूलना आदमी के बस में नहीं है। डॉक्टर अंबेडकर , डॉ राम मनोहर लोहिया, रामस्वरूप वर्मा इत्यादि की ईमानदार परंपरा में भूपेंद्र नारायण मंडल का भी नाम आता है जिन्होंने संपूर्ण जीवन समाज सुधार और देश की राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाया। तथा देश हित में  सम्पूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया। बिहार के मधेपुरा में जन्मे भूपेंद्र नारायण मंडल समाजवादी राजनीति के एक प्रमुख हस्ताक्षर थे जिन्होंने राजनीति में जो करके दिखाया वह असंभव सा लगता है डॉ राम मनोहर लोहिया भूपेंद्र नारायण मंडल को बड़े प्यार से भूपेंद्र बाबू कहा करते थे तथा देश के प्रति उनकी विचार और चरित्र पर गर्व करते थे तथा उन्हें अपने खेमे की शान समझते थे। भूपेंद्र बाबू 1954-55 में बिहार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सचिव नियुक्त हुए तथा 1955 में बिहार सोशलिस्ट पार्टी के प्रांतीय सचिव भी बनाए गए 1957 में बिहार विधान सभा का आम चुनाव हुआ जिसमें 1962 तक विधायक रहे इस अवधि में राष्ट्रीय महत्व की समस्याओं लोकहित के विषय दलितों शोषित हो तथा अल्पसंख्यकों के मामलों को विधानसभा में उठाया पंचवर्षीय योजना की असफलता बढ़ती चोरी डकैती राजस्व नीति तथा हिंदी भाषा के प्रयोग इत्यादि के लिए वे लगातार लड़ते रहे।

लोहिया के बेहद कऱीबी रहे भूपेन्द्र बाबू की रुचि कभी सत्ता-समीकरण साधने में नहीं रही, बल्कि सामाजिक न्याय के लिए जनांदोलन खड़ा करने में उनकी दिलचस्पी रही। आज के पोस्टरब्वॉय पॉलिटिक्स के लोकप्रियतावादी चलन व रातोरात नेता बनकर भारतीय राजनीति के क्षितिज पर छा जाने के उतावलेपन के समय में बी एन मंडल का जीवनवृत्त इस बात की ताकीद करता है कि उनमें बुद्ध की करुणा, लोहिया के कर्म व उसूल की कठोरता एवं कबीर का फक्कड़पन था।
चुनावी तंत्र की शुचिता व जनहित में नेताओं की मितव्ययिता पर ज़ोर देते हुए चुनाव के दौरान वे बैलगाड़ी से क्षेत्र भ्रमण करते थे जो सिलसिला जीवनपर्यंत चला। हर दौर में चुनाव लडऩे के लिए पैसे की ज़रूरत पड़ती रही है। पर, संचय-संग्रह की प्रवृत्ति, दिखावे और फिज़ूलखर्ची की प्रकृति न हो, तो कम पैसे में भी चुनाव लड़ा और जीता जा सकता है। इसके लिए नेता का अंदर-बाहर एक होना ज़रूरी है। तभी वह अपने कार्यकर्ताओं को भी मितव्ययिता के लिए तैयार कर पाएगा। एक समय वह था और एक समय आज का है जहां ‘नेता’ और ‘राजनीतिÓ यह दोनों शब्द इतने अर्थहीन हो गए हैं कि इन शब्दों का अर्थ आज पूर्ण रूप से दूषित हो चुका है, नेता या राजनीति जैसे शब्द बोलते या सुनते ही हमारे मन मस्तिष्क में जो भाव कौंधता है उसके गंध कैसी होती है यह कहने की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती। आज की व्यक्तिवादी राजनीति के दौर में जब हम भूपेंद्र नारायण मंडल को याद करते हैं तो विशेष रूप से हम यह पाते हैं कि वह जाति कि नहीं बल्कि जमात की राजनीति करते थे देश के बहुसंख्यक वर्ग या कहें कि श्रमशील समाज के नेतृत्वकर्ता के रूप में सामने आते हैं भूपेंद्र नारायण मंडल! इस अर्थ में वे देश के सच्चे कर्मयोगी थे।

भूपेंद्र बाबू कि जो विशेषता उन्हें और लोगों से अलग करती है वह उनका करनी और कथनी में एकमेक हो जाना है। वे राजनीति को कुछ अलग नहीं समझते थे, राजनीति उनके लिए अपने घर का वह जरूरी काम था जिसे वे पूरी ईमानदारी व मेहनत से करते थे। आज के नेताओं की भांति वे अपना घर भरने में लगे रहने वालों में नहीं थे बल्कि अगर देश के लिए कुछ जरूरत पड़े तो अपने घर से दे देने वालों में से थे। उन्होंने अपने चिंतन में देश की आम जनता को केंद्र में रखा देश की जनता के हित में जो होगा वह वे स्वीकार करते थे देश की जनता के अतिरिक्त उनके लिए कोई और देश नहीं , उनका देश, उनका समाजवाद देश के अंतिम व्यक्ति से शुरू होता है देश के श्रमशील वर्ग के हित में उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया भूपेंद्र बाबू अर्जक संघ के व्यक्ति थे आमजन के हित के लिए उन्होंने त्रिवेणी संघ, पिछड़ा वर्ग संघ तथा अन्य जन आंदोलनों के समूह में शामिल रहे और निरंतर समाज सुधार में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते रहे। विचारणीय बात यह है कि आज हम में से, हमारी नई पीढ़ी में से कितने लोग भूपेंद्र नारायण मंडल को जानते हैं अथवा जानते हैं तो कितने लोग ऐसे हैं जो उनको समझने का प्रयास करते हैं राजनीति और राजनेताओं की हो रही निरंतर अवनति यह सूचित करती हैं कि हमने अपने महापुरुषों को न पढ़ा है, न समझा है और न ही धारण किया है भूपेंद्र नारायण मंडल जैसे महापुरुषों का लक्ष्य आज भी अधूरा है जिसे पूरा करना हमलोगों की जिम्मेदारी है उनके रास्ते पर चलकर हम एक बेहतर लोकतांत्रिक समाज का निर्माण कर सकते है अपने सपनों का भारत बना सकते हैं।
( लेखक- महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से संबंध है।)

RELATED ARTICLES

कमाल ख़ान के नहीं होने का अर्थ

मैं पूछता हूँ तुझसे , बोल माँ वसुंधरे , तू अनमोल रत्न लीलती है किसलिए ? राजेश बादल कमाल ख़ान अब नहीं है। भरोसा नहीं होता। दुनिया...

देशप्रेमी की चेतावनी है कि गूगल मैप इस्तेमाल न करें

शमीम शर्मा आज मेरे ज़हन में उस नौजवान की छवि उभर रही है जो सडक़ किनारे नक्शे और कैलेंडरों के बंडल लिये बैठा रहा करता।...

डब्ल्यूएचओ की चेतावनी को गंभीरता से लें

लक्ष्मीकांता चावला भारत सरकार और विश्व के सभी देश विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों, सलाह और उसके द्वारा दी गई चेतावनी को बहुत गंभीरता से...

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

डीपीएसजी कप कराटे प्रतियोगिता में अल्टस स्कूल ने किया शानदार प्रदर्शन

विकासनगर। द अल्टस इंटरनैशनल स्कूल के विद्यार्थियों ने डीपीएसजी कराटे में शानदार प्रदर्शन कर 5 स्वर्ण और 2 कांस्य पदक जीतकर विद्यालय का नाम...

सेपियंस विद्यालय में एनसीसी भर्ती प्रक्रिया का आयोजन

विकासनगर। सेपियंस स्कूल विकासनगर में कक्षा 8 और 9 के छात्रों का एनसीसी की भर्ती के लिए चयन प्रक्रिया का आयोजन किया गया। जिसमें...

यूकेडी एवं व्यापारी नेता की कार में युवक ने लगायी आग

हरिद्वार। यूकेडी एवं व्यापारी नेता सुमित अरोड़ा की घर के सामने खड़ी कार में एक युवक ने आग लगा दी। पूरी घटना सीसीटीवी कैमरे...

डीपीएसजी कप कराटे चैंपियनशिप में शिवालिक एकेडमी के खिलाड़ियों ने मारी बाजी

विकासनगर। डीपीएसजी कप कराटे चैंपियनशिप प्रतियोगिता 2024 में शिवालिक एकेडमी के खिलाड़ियों ने प्रथम स्थान प्राप्त कर अपने स्कूल का नाम रोशन किया। डीपीएसजी स्कूल...

Recent Comments