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जलवायु परिवर्तन प्रभाव से मौसम में तल्खी

ज्ञानेन्द्र रावत

समूचे देश में खासकर उत्तर भारत में पहाड़ों पर लगातार हो रही बर्फबारी और ठंडी हवाओं के चलने से शीत लहर का प्रकोप बढऩे से लगातार ठंड बढ़ रही है, जो कम होने का नाम नहीं ले रही है। भीषण ठंड से लोग बेजार हैं। उत्तराखण्ड में प्राकृतिक जलस्रोत जमने लगे हैं। केदारनाथ और मुक्तेश्वर में नलों और तालाबों का पानी जमने लगा है। श्रीनगर में डल झील सहित दूसरे जलस्रोतों की दशा भी ऐसी ही है। कहीं बर्फीले तूफान के चलते वाहन अधर में फंसे पड़े हैं, कहीं प्रशासन ने यलो अलर्ट जारी कर दिया है। राजस्थान के गंगानगर, चुरू, बीकानेर, अलवर, हनुमानगढ़, नागौर, जैसलमेर, पाली, जोधपुर, झुंझनू, सीकर, टौंक, जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, चित्तौडग़ढ़ में यलो अलर्ट जारी कर किया गया है। देश के अधिकांश हिस्सों में तापमान 3 से 5 डिग्री से भी ज्यादा नीचे गिरने से जहां जन-जीवन प्रभावित हुआ है, वहीं लोगों का जीना दुश्वार हो गया है।
असलियत तो यह है कि बीते दिनों जम्मू-कश्मीर में औसतन तापमान शून्य से 5.9 डिग्री नीचे गया, जबकि गुलमर्ग में शून्य से 10.4 डिग्री नीचे रहा। पहलगाम में 8.7 डिग्री, श्रीनगर में 6.2 डिग्री, बिहार के पटना में न्यूनतम 5.3 डिग्री पहुंचा। राजस्थान में शेखावाटी अंचल में तापभाव शून्य से 5 डिग्री नीचे रहा, वहीं राज्य की 36 जगहों पर वह 9 डिग्री से भी नीचे रहा। पंजाब-हरियाणा में 1.6 डिग्री, हिमाचल में 12.2 डिग्री नीचे रहा, वहीं मध्यप्रदेश के सागर और ग्वालियर सहित 14 जिले शीत लहर के भीषण प्रकोप से जूझ रहे हैं।

गौरतलब है कि इस बार देशवासियों को बीते बरसों की तुलना में भीषण ठंड का सामना करना पड़ रहा है। सन् 1965 के दिसम्बर माह में देश में शीत लहर का प्रकोप नौ दिन तक रहा था। लेकिन इस बार इसने 1965 का रिकार्ड तोड़ दिया है और इसके जनवरी के पहले पखवाड़े तक रहने का अनुमान है। देश की राजधानी दिल्ली ने तो बीते रविवार को 15 सालों का रिकार्ड तोड़ दिया है। यहां पारा 4.6 डिग्री तक पहुंच गया जो सीजन का सबसे सर्द दिन रहा है। इसका अहम कारण जलवायु परिवर्तन के चलते प्रशांत महासागर में हुए मौसम के बदलाव की वजह से ला नीना का प्रभाव है।
दरअसल मौसम के चक्र में प्रशांत महासागर की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। ईएनएसओ प्रशांत महासागर की सतह पर पानी और हवा में असामान्य बदलाव लाता है। इसका असर पूरी दुनिया के वर्षा चक्र, तापमान और वायु संचरण प्रणाली पर पड़ता है। जहां ला नीना ईएनएसओ के ठंडे प्रभाव का परिचायक है, वहीं अल नीनो भीषण गर्मी के प्रभाव का प्रतीक है। देखा गया है कि दोनों ही प्रभाव प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में सामान्य तापमान में असमानता पैदा करते हैं। ला नीना में प्रशांत महासागर की गर्म पानी की सतह पर हवा पश्चिम की ओर बहती है, नतीजतन गर्म पानी में हलचल होने से ठंडा पानी सतह पर आ जाता है, इससे पूर्वी प्रशांत क्षेत्र सामान्य से काफी ठंडा हो जाता है। ला नीना के चलते सर्दियों में तेजी से हवा बहने पर भूमध्य रेखा और उसके आसपास का पानी सामान्य से ज्यादा ठंडा हो जाता है। इससे महासागर का तापमान समूची दुनिया के मौसम को प्रभावित कर देता है। इसके कारण कहीं भारी बारिश, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की स्थिति पैदा होती है।

हमारे देश में पहाड़ों पर भीषण बर्फबारी के चलते कड़ाके की जानलेवा ठंड इसी ला नीना का परिणाम है। मौसम विभाग और दुनिया के वैज्ञानिक भी इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं। जहां तक भारत का सवाल है, मैरीलैंड यूनिवर्सिटी अमेरिका के जलवायु वैज्ञानिक रघु मूर्तगुडे की मानें तो भारत में समूचे उत्तर, मध्य और दक्षिण भारत के पहाड़ी इलाकों में भीषण ठंड का प्रमुख कारण ला नीना ही है। भारत में ला नीना का असर सर्दी के मौसम में ही होता है। इसके चलते हवायें उत्तर-पूर्व के हिस्सों की ओर से बहती हैं। इससे पैदा पश्चिमी विक्षोभ के कारण उत्तर और दक्षिण में निम्न दबाव बनता है, नतीजतन देश में भीषण बारिश और बर्फबारी होती है और शीत लहर के प्रकोप में बढ़ोतरी होती है।

इस बार शीत लहर के प्रकोप से आने वाले 15-20 दिनों तक राहत मिलने के आसार नहीं हैं। नतीजतन शहरों में प्रदूषण का स्तर भी बढ़ा रहेगा। ऐसे में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है। बहुत जरूरत हो तभी घर से बाहर निकलें अन्यथा घर में ही रजाई के अंदर दुबके रहें। भीषण जानलेवा सर्दी से फसलों के बर्बाद होने की आशंका को भी नकारा नहीं जा सकता। इससे किसान काफी भयभीत है। पारा गिरने और पाला पडऩे से रबी की फसल का नुकसान होगा, सब्जियों का भी नुकसान होगा। पौधों की पत्तियां हरी होने की जगह हल्की भूरी पडऩे लग जायेंगी। टमाटर, गोभी, बैंगन और मिर्च की फसल पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। रोजमर्रा की जरूरतों, खासकर भोजन, पानी और बिजली जैसी सुविधाओं व स्वास्थ्य सेवा पर इसका असर पड़ेगा। कड़ाके की ठंड पड़ेगी, ऊर्जा की खपत बढ़ेगी, खर्च बढ़ेगा, धीमी आर्थिक प्रगति की दर और बढ़ती महंगाई आम जनता की जेब पर भारी पड़ेगी। ऐसी हालत में दूसरे साधनों पर निर्भरता और बढ़ेगी। इससे खाद्यान्न तो प्रभावित होगा ही, अर्थव्यवस्था पर भी भारी प्रतिकूल प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा। दुनिया की स्थिति भी कमोबेश यही रहेगी।

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