कु. कृतिका खत्री
लोहडी का त्यौहार पंजाबियों तथा हरियाणवी लोगों का प्रमुख त्यौहार माना जाता है । यह लोहडी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू कश्मीर और हिमाचल में धूम धाम तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं । यह त्यौहार पौष मास की अंतिम रात्रि और मकर संक्राति की पूर्व संध्या को हर वर्ष मनाया जाता है । इसे सर्दियों के जाने और बसंत के आने के संकेत के रूप में भी देखा जाता है । लोहडी पर्व रबी की फसल की बुनाई और कटाई से जुड़ा हुआ है । किसान इस दिन रबी की फसल जैसे मक्का, तिल, गेहूं, सरसों, चना आदि को अग्नि को समर्पित करते है और भगवान का आभार प्रकट करते है । लोहडी की शाम को लोग प्यार और भाईचारे के साथ लोकगीत गाते है और किसी खुले स्थान पर लकडियों और उपलों से आग जलाकर उसकी परिक्रमा करते है । ढोल और नगाडों के साथ नृत्य, भांगडा और गिद्दा भी देखने को मिलता है । आग के चारों ओर बैठकर रेवडी, गजक और मूंगफलियों का आंनद लिया जाता है । और इन्हें प्रसाद के रूप में सभी लोगों को बांटा जाता है । जिस घर में नया नया विवाह या बच्चे का जन्म होता है, वहां खासतौर पर लोहड़ी धूमधाम से मनाई जाती है ।
लोहडी का त्यौहार दुल्ला भट्टी की कहानी से जुड़ा हुआ है । कहानी के अनुसार दुल्ला भट्टी बादशाह अकबर के शासनकाल के दौरान पंजाब में रहते थे । उन्होंने धनवान और जमीनदारों से धन लूटकर गरीबों में बांटने के साथ, जबरन रूप से बेची जा रही हिन्दू लडकियों को मुक्त करवाया । साथ ही उन्होंने हिन्दू अनुष्ठानों के साथ उन सभी लडकियों का विवाह हिन्दू लडकों से करवाने की व्यवस्था की और उन्हें दहेज भी प्रदान किया । जिस कारण वह पंजाब के लोगों के नायक बन गए । इसलिए आज भी लोहडी के गीतों में दुल्ला भट्टी का आभार व्यक्त करने के लिए उनका नाम अवश्य लिया जाता हैं ।एक अन्य कथा के अनुसार कंस ने भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को भेजा था, जिसका वध कृष्ण ने खेल खेल में कर दिया । लोहिता के वध का आनंद मनाने के लिए लोगों द्वारा लोहडी का त्यौहार मनाया गया ।लोहडी मनाने की मान्यता शिव और सती से भी जुड़ी है । एक कथा के अनुसार माता सती के आग में समर्पित होने के कारण लोहडी के दिन अग्नि जलाई जाती है ।