जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में संसद में बताया गया है कि पनामा तथा पैराडाइज पेपर लीक मामले में भारत से संबद्ध 930 इकाइयों के संबंध में 20,353 करोड़ रुपये की राशि के कुल अघोषित जमा का पता चला है। बच्चन परिवार से जुड़ी कथित अनियमितताओं के कई मामले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच के दायरे में हैं। ‘इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स’ (आईसीआईजे) द्वारा खुलासा किए गए मामलों में की गई निरंतर जांच से अब तक अघोषित विदेशी खातों में 11,010 करोड़ रुपये से अधिक जमा का पता चला है। बच्चन परिवार की बहू ऐश्वर्या राय से 20 दिसंबर को ईडी ने पनामा पेपर्स के मामले में चल रही जांच के सिलसिले में पूछताछ की है।
जहां पनामा पेपर्स और पैराडाइज पेपर्स के खुलासे होने पर केंद्र सरकार द्वारा देश की मशूहर हस्तियों की विदेश में गुप्त वित्तीय संपत्तियों की विस्तृत जानकारी हेतु बहु-एजेंसी जांच कराई जा रही है, वहीं अक्तूबर, 2021 से पैंडोरा पेपर्स के संबंध में मल्टी एजेंसी ग्रुप (एमएजी) ने अपनी बैठकें लगातार आयोजित करके जांच शुरू कर दी है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के प्रमुख जेबी महापात्रा की अध्यक्षता में आयोजित इन बैठकों में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), रिजर्व बैंक और वित्तीय इंटेलीजेंस यूनिट के अधिकारी शामिल हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि पूरी दुनिया में ‘इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स’ द्वारा अक्तूबर, 2021 की शुरुआत में प्रकाशित पैंडोरा पेपर्स रिपोर्ट लगभग 1.2 करोड़ दस्तावेज़ों की एक ऐसी पड़ताल है, जिसे 117 देशों के 600 खोजी पत्रकारों की मदद से तैयार किया गया है। इस पड़ताल में पाया गया है कि भारत सहित दुनियाभर के 200 से ज्यादा देशों के बड़े नेताओं, अरबपतियों और मशहूर हस्तियों ने विदेशों में धन बचाने और अपने कालेधन के गोपनीय निवेश के लिए किस तरह टैक्स पनाहगाह देशों ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, सेशेल्स, हांगकांग और बेलीज आदि में छुपाकर सुरक्षित किया हुआ है। इस रिपोर्ट में 300 से अधिक भारतीयों के नाम भी शामिल हैं। इनमें अनिल अंबानी, विनोद अडाणी, सचिन तेंदुलकर, जैकी श्राफ, करण मजूमदार, नीरा राडिया, सतीश शर्मा आदि शामिल हैं।
ज्ञातव्य है कि वर्ष 2017 में पैराडाइज़ पेपर्स के तहत 1.34 करोड़ से अधिक गोपनीय इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के माध्यम से 70 लाख लोन समझौते, वित्तीय विवरण, ई-मेल और ट्रस्ट डीड लीक किये थे। इनमें 714 भारतीयों के नाम उजागर हुए थे। इसके पहले वर्ष 2016 में पनामा पेपर्स के तहत 1 करोड़ 15 लाख संवेदनशील वित्तीय दस्तावेज लीक किये थे। इसमें वैश्विक कॉरपोरेटों के ‘मनी लॉन्डरिंग’ के रिकॉर्ड थे। 500 भारतीयों के नाम भी सामने आए थे।
ये विभिन्न लीक फ़ाइलें बताती हैं कि कैसे दुनिया के कुछ सबसे शक्तिशाली लोग अपनी संपत्ति छिपाने के लिए टैक्स हैवन्स देशों में स्थित शैल कंपनियों का इस्तेमाल करते हैं। टैक्स हैवन देश वे होते हैं, जहां नकली कंपनियां बनाना आसान होता है और बहुत कम टैक्स या शून्य टैक्स लगता है। इन देशों में ऐसे क़ानून होते हैं, जिससे कंपनी के मालिक की पहचान का पता लगा पाना मुश्किल हो। टैक्स हैवन देशों की शैल कंपनियों में विश्व की कई ऊंची हस्तियां अपना कालाधन जमा करती हैं।
वस्तुत: कालाधन वह धन होता है, जिस पर आयकर की देनदारी होती है, लेकिन उसकी जानकारी सरकार को नहीं दी जाती है। कालाधन का स्रोत कानूनी और गैर-कानूनी कोई भी हो सकता है। आपराधिक गतिविधियां जैसे अपहरण, तस्करी, निजी क्षेत्र में कार्यरत लोगों द्वारा की गई जालसाजी इत्यादि के माध्यम से अर्जित धन भी कालाधन कहलाता है। ड्रग ट्रेड, अवैध हथियारों का व्यापार, जबरन वसूली का पैसा, फिरौती और साइबर अपराध से कमाया गया पैसा भी शेल कम्पनियों में सुरक्षित कर दिया जाता है, ताकि यह कालाधन अपने देश में सफेद धन में बदल जाए। स्पष्ट है कि भ्रष्ट राजनेताओं से लेकर, नौकरशाह, व्यापारिक घराने और अपराधी तक अपने कालेधन को हवाला ट्रांसफर के जरिये टैक्स हैवन्स देशों में आराम से रख सकते हैं, इस तरह से वे बेईमानी से कमाया धन छिपाकर टैक्स से बच जाते हैं।
दुनिया के प्रसिद्ध गैर लाभकारी संगठन ऑक्सफेम इंडिया की नई रिपोर्ट के मुताबिक टैक्स चोरी की पनाहगाहों के इस्तेमाल से दुनियाभर में सरकारों को हर साल 427 अरब डॉलर के टैक्स का घाटा होता है। सबसे ज्यादा असर विकासशील देशों पर होता है। विकासशील देशों से बेइमानी का पैसा बाहर जाने की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है और इसका विकास पर असर हो रहा है। यह समाज के लिए हानिकारक है। विदेशों में गोपनीय रूप से धन छुपाकर रखे जाने का सीधा असर आम आदमी के कल्याण पर भी पड़ता है।
निश्चित रूप से पैंडोरा, पनामा और पैराडाइज पेपर्स लीक जैसे मामलों में कई मशहूर भारतीयों के नाम उजागर होने से कालेधन को देश के बाहर भेजे जाने की कहानियां सामने आ जाती हैं। साथ ही गोपनीय रूप से धन विदेशों में भेजे जाने की रफ्तार बढ़ रही है। अर्थ-विशेषज्ञ आर. वैद्यनाथन ने अनुमान लगाया है कि इसकी मात्रा करीब 72.8 लाख करोड़ रु. है। स्विस नेशनल बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 तक स्विस बैंकों में भारतीय नागरिकों और कंपनियों का जमा धन 20,700 करोड़ रुपए से अधिक है। नेशनल काउंसिल ऑफ़ अप्लाइड इकॉनॉमिक रिसर्च के मुताबिक साल 1980 से 2010 के बीच भारत के बाहर जमा होने वाला काला धन 384 अरब डॉलर से लेकर 490 अरब डॉलर के बीच था।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश में भी कालेधन से निपटने के लिए अब से पहले इनकम डिक्लेयरेशन स्कीम, वॉलंटयरी डिस्क्लोजऱ स्कीम, टैक्स रेट को कम करना, 1991 के बाद व्यापार पर कंट्रोल हटाना, क़ानूनों में बदलाव जैसे कई कदम उठाए गए हैं। ऐसे विधान बनाए गए हैं जो कर अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने की अनुमति देते हैं कि करदाता कर चोरी नहीं करें। इसमें ‘अपने ग्राहक को जानिए’ (केवाईसी) की व्यवस्था जोड़ी गई, जिसमें किसी विशेष क्षेत्र में लेनदेन करने वालों को अपनी पूरी पहचान बतानी होती है ताकि दूसरे कार्यक्षेत्रों के साथ उस सूचना को साझा किया जा सके। लेकिन ऐसे विभिन्न प्रयासों के बावजूद कालेधन की बढ़ोतरी और देश से कालेधन को विदेश भेजे जाने की मात्रा में कोई प्रभावी कमी नहीं आई है। विदेशी बैंकों में जमा कालेधन के खाताधारकों की सूची मिलने की खबर मात्र को बड़ी सफलता के रूप में नहीं देखा जा सकता है। सफलता तभी मानी जाएगी जब विदेशों में जमा अधिकांश कालाधन सरकारी खातों में वापस आ जाएगा।
अब पनामा पेपर्स, पैराडाइज पेपर्स और पैंडोरा पेपर्स लीक मामले में जांच का सामान्य रूटीन नहीं रहना चाहिए। चूंकि ये मामले प्रभावशाली सामाजिक व वित्तीय अभिजात्य वर्ग से संबंध रखते हैं, अतएव जांच संबंधी कार्रवाई कठोर होनी चाहिए। ऐसे में अब विभिन्न देशों की सरकारों को एकीकृत रूप से मशहूर हस्तियों के द्वारा टैक्स हैवन्स देशों में निवेशित की जा रही काली संपत्तियों के वैश्विक कर चोरी के ठिकानों को समाप्त करने के लिए आगे बढऩा होगा।
लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।