ज्ञानेन्द्र रावत
देश में कोरोना का संकट थमने का नाम नहीं ले रहा है। मौजूदा हालात इस बात के सबूत हैं कि फिलहाल इस महामारी से निजात नहीं मिलने वाली। कोरोना के नये वेरिएंट ओमीक्रोन ने इस संकट को और बढ़ा दिया है। इस बारे में डब्ल्यूएचओ की वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन का कहना है कि ‘ओमीक्रोन को सहज लेना घातक है। इसलिए सावधानी बरतना बेहद जरूरी है।’ देश के 25 राज्यों में कोरोना के मामले में महाराष्ट्र शीर्ष पर है। यदि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे की मानें तो राज्य में रोजाना 10,000 से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। राज्य के 10 मंत्री और तकरीबन 60 विधायक कोरोना संक्रमित हैं। हालात की भयावहता का सबूत यह है कि राज्य के कुल संक्रमित 218 सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों में से 199 अकेले मुंबई के सरकारी अस्पतालों के हैं। ऐसे हालात में कम्युनिटी स्प्रैड की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। उस हालत में यह खतरा और बढ़ जाता है जबकि राज्य में 16,000 लोगों पर एक डाक्टर हो और राज्य में 25 फीसदी डाक्टरों के पद खाली पड़े हों। टाटा सामाजिक अनुसंधान संस्थान की रिपोर्ट तो यही दावा करती है।
देश की राजधानी दिल्ली में भी संक्रमितों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। इस मामले में आम लोगों की बात तो दीगर है, अति विशिष्ट लोग भी इससे अछूते नहीं हैं। बिहार के दो उपमुख्यमंत्री, दो मंत्री, पंजाब के मुख्यमंत्री आवास के 30 और कार्यालय के दो कर्मचारी, दिल्ली के मुख्यमंत्री, अभिनेता अमिताभ बच्चन और पूर्व क्रिकेट कप्तान सौरभ गांगुली का आवास भी कोरोना के चंगुल से नहीं बचा है।
विडंबना है कि लोग अब भी बचाव के नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। किसी भी शहर-कस्बे का बाजार हो या सब्जी मंडी, या लोकल ट्रेन, उनमें बिना मास्क के भीड़ ही भीड़ नजर आती है। शारीरिक दूरी का तो सवाल ही कहां उठता है। मुंबई, कोलकाता जैसे बड़े शहरों में लोकल ट्रेन की संख्या बढ़ाये जाने की मांग की जा रही है। वह बात दीगर है कि किसी राज्य में रात का कर्फ्यू लागू है तो कहीं लॉकडाउन की तैयारी है। वैसे अर्थव्यवस्था को मद्देनजर रखते हुए पूर्ण लॉकडाउन की अब उम्मीद नहीं के बराबर है। अधिकतर राज्यों में स्कूल-कॉलेज बंद कर दिये गए हैं। लेकिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव समय पर होंगे। चुनावी रैलियों पर कोई रोक नहीं है। उ.प्र. हाईकोर्ट तो काफी पहले ही अनुरोध कर चुका है कि चुनाव टाल दिए जायें।
अंतर्राष्ट्रीय विकास नीति सलाहकार जेफ्री सैश का मानना है कि भारत ने आजादी के बाद से ही स्वास्थ्य में बहुत कम निवेश किया है। अब आपके पास सभी माध्यम हैं। ऐसे हालात में अधिक निवेश और कुशल प्रबंधन समय की मांग है। आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में दुनिया में भारत की रैंकिंग 145 है। असल में स्वास्थ्य के मामले में हमारा रिकार्ड बहुत ही शोचनीय है। नतीजन लोगों को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती। इस बारे में हार्वर्ड हैल्थ इंस्टिट्यूट का कहना है कि फिलहाल कोरोना के खात्मे की उम्मीद दूर की कौड़ी है। इसलिए धैर्य के साथ हमें सावधानी के उपायों का पालन करना बेहद जरूरी है। फिर देश की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। गौरतलब है कि जीवन के अधिकार में स्वस्थ जीवन का अधिकार शामिल है लेकिन इस ओर ध्यान न दिया जाना बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है।
सीडीडीईपी की रिपोर्ट के अनुसार, हमारे यहां 10 लाख 41 हजार 395 एलोपैथिक डाक्टर रजिस्टर्ड हैं। हर 10,189 लोगों पर एक डाक्टर है जबकि डब्ल्यूएचओ ने एक हजार लोगों पर एक डाक्टर की सिफारिश की है। इस तरह छह लाख डाक्टरों की कमी है। हर 483 लोगों पर एक नर्स है यानी 20 लाख नर्सों की कमी है। यहां डाक्टर मरीजों को दो मिनट का समय भी नहीं दे पाते जबकि अमेरिका, स्वीडन और नार्वे जैसे देशों में डाक्टर मरीज को 20 मिनट का समय देते हैं। यहां 90 करोड़ ग्रामीण आबादी की स्वास्थ्य संबंधी देखभाल हेतु 1.1 लाख डाक्टर हैं। ग्रामीण इलाके में 5 में केवल एक डाक्टर ठीक से प्रशिक्षित है। दि हेल्थ वर्क फोर्स इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार देश में ढाई लाख हैल्थ वर्करों में से 59.2 फीसदी शहरी इलाकों में जबकि 40.8 फीसदी गांवों में प्रैक्टिस करते हैं। आजादी के समय हमारे यहां कुल 23 मेडिकल कालेज थे जबकि 2016 में 420 थे। उसके बाद खुले मेडिकल कालेजों की तादाद अलग है। इनमें हर साल केवल 60 हजार डाक्टर तैयार हो पाते हैं। हर साल 100 मेडिकल कालेज खोले जायें तब कहीं डाक्टरों की कमी पूरी हो सकेगी।
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल्स द्वारा किये सर्वे के अनुसार बाजार में बिक रहीं 3.16 फीसदी और सरकारी अस्पतालों-डिस्पेंसरियों की दवाओं की 10.02 फीसदी गुणवत्ता खराब है। जांच में सरकारी अस्पतालों-डिस्पेंसरियों की दवाओं की गुणवत्ता घटिया पायी गई। निजी अस्पताल रोगियों से ज्यादा मुनाफे पर ध्यान देते हैं।