Friday, March 29, 2024
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मिथकीय मोहपाश में बंधने की मजबूरी

अविजीत पाठक

ख्यात हस्तियों यानी सितारों के बारे में जानने की दिलचस्पी किस कदर होती है– खासकर उनका प्यार और रोमांस! बेशक, यह सितारा-संस्कृति हमें ऐसे मिथकीय संसार में ले जाती है, जिसमें नयनाभिराम दृश्य, ग्लैमर, पैसा, शोहरत, बनती दोस्ती और भंग होते रिश्तों की ‘चाट’ है और हम लोग– जो अनजान/बिना नाम वाले हैं– इनकी परीलोक सरीखी कथा से विस्मृत होते रहते हैं, चटपटी कहानियों के बारे में पढ़-बतियाकर रस लेते हैं। इसलिए हाल ही में कैटरीना कैफ और विक्की कौशल की मोहक जोड़ी के बारे में निरंतर जिज्ञासा रही। लोगबाग राजस्थान के बरवाड़ा में सिक्स सैंसेस नामक किले में संपन्न हुई इस भव्य शादी के बारे में जानने को उत्सुक रहे। समारोह की भव्यता और अंदर के दृश्यों के बारे में जानने की लोगों की इस प्रबल उत्कंठा को पूरा करने को असंख्य मीडिया हाउस भी तत्परता से जुटे रहे।

इसलिए, जब वे कहते हैं ‘देखिए हमारे पास है गलियारे में बांह में बांह डाल घूमते ‘नवदंपति की पहली तस्वीर’, तो लोग बड़ी दिलचस्पी से इसको हाथों-हाथ लेते हैं। हमें बताया गया कि कैटरीना की शादी की अंगूठी प्रिंसेस डायना द्वारा पहनी मशहूर पुखराज की अंगूठी जैसी है। यह ‘रहस्योद्घाटन’ भी किया गया : जुहू के ‘लव-नैस्ट’ को सजाने में 50 कारीगर दिन-रात एक किए हुए हैं; कैटरीना का दुल्हन वाला लाल लहंगा कैसा है या फिर संगीत-शाम पांच-सतहों वाला केक था या फिर 20 किलो जैविक मेहंदी खपी है– जी हां, यह सारा आयोजन करण जौहर की किसी ब्लॉक बस्टर फिल्म सरीखा है। इस ‘साक्षात परीकथा’ का रसास्वादन छोड़ देना भला कौन गवारा करे?

यह सितारा-संस्कृति हमें क्योंकर इतनी लुभाती है? क्या यह किसी प्रकार का पलायन है या हमारी रोजाना जिंदगी की तल्खियों से कुछ लम्हों के लिए सही, ध्यान भटकाने में राहत भरा अहसास है? एक सरकारी दफ्तर में अपने अफसर से लगातार जलील होता कोई बाबू; भीड़-भाड़ वाले बैंक का कैशियर; रोजमर्रा के गृहस्थी के कामों- सफाई, धुलाई, खाना पकाने- से बुरी तरह थकी-टूटी गृहिणी; अपनी शादी हेतु सुंदर दिखने की चाहत लिए बारम्बार ब्यूटी पार्लर का रुख करती मध्य वर्गीय एक युवा लडक़ी; संघर्षशील युवा, जिसके पास ढंग का पक्का पेशा नहीं है– जी हां, हमीं में से इन लोगों को लगता है रोजाना की जिंदगी अपना आकर्षण खो चुकी है, अल्बर्ट कैमस के शब्दों में कहें ‘नीरस’।
शायद सितारा-संस्कृति का अवलोकन करना एक उत्तेजना, शारीरिक एवं मानसिक सनसनी भरी फिल्म है, जो हमें अपनी एकरसता से वक्ती निजात पाने में मदद करती है या फिर क्या दबी हुई इच्छा की पूर्ति है? क्या यह वह तमन्ना है, जो मुंबई की कॉलेज जाने वाली निम्न मध्यवर्गीय लडक़ी कैटरीना जैसा भव्य लहंगा पहनना मन-ही-मन पाले हुए है? क्या यह कोलकात्ता की भीड़-शोर भरी लोकल ट्रेन में सफर करने वाले आम आदमी की सुनहली कल्पना है, जिसमें खुद को संगिनी के साथ मालदीव के समुद्रतटों पर रोमांस करते पाता है? क्या हम भी अनुष्का शर्मा-विराट कोहली की तरह फेसबुक पर अपने ‘सदाबहार एवं वैभवशाली’ प्यार का इज़हार करती पोस्ट डालने की हसरत नहीं रखते?

आज हम मीडिया चालित आभासीय उपभोक्ता संस्कृति में जी रहे हैं। हमें सब कुछ ब्रांडेड उपभोग करने को उद्धृत किया जाता है- चाहे यह कोई डेटिंग एप्लीकेशन हो, पहाड़ों में हनीमून पैकेज या फिर वैलेंटाइन डे पर उपहार रूपी अंगूठी। उपभोक्तावाद के इस लुभायमान तर्क से मुक्त रहना आसान नहीं होता। यहां यह अहम बात जानना जरूरी है कि उपभोक्ता संस्कृति निजाम को ब्रैंडिंग की आसक्ति घडऩे-फैलाने हेतु किसी सितारे-नामचीन हस्ती की सिफारिश एवं तारीफ करती छवि की दरकार होती है। लेकिन कोई हैरानी नहीं, मशहूर हस्तियां– क्रिकेट स्टार, नामी खिलाड़ी, नामी बॉलीवुड हीरो-हीरोइन, ब्यूटी क्वीन– इनको भी अपने व्यक्तित्व से जुड़े ‘रहस्य’ बरकरार रखने की जरूरत होती है; चाहत है ब्रांडेड जगत के प्रचार अभियानों में अपना चेहरा लगातार बनाए रखने की। क्या हैरानी, यदि कैटरीन-विक्की ने अपनी शादी के टेलीकास्ट-अधिकार अमेज़ॉन प्राइम को 80 करोड़ में बेचे हों? अन्य शब्दों में, सितारा-संस्कृति को बढ़ावा देने वाले तकनीकी-पूंजीवादियों, छिपे रहकर उद्धृत वाले एवं प्रबंधन गुरुओं के लिए इस मायाजाल को कायम रखना जरूरी है। इस संस्कृति-राजनीति को बनाए रखने के लिए चमकदार पत्रिकाएं, इंस्टाग्राम/ट्विटर मैसेज़ फैशन शो, सौंदर्य प्रतियोगिताएं या चकाचौंध भरे शादी समारोह जैसे आयोजन बहुत जरूरी हैं। यह एक बढिय़ा और फायदेमंद धंधा है!तथापि, बड़ा प्रश्न यह है कि क्या हम लोगों के लिए इस किस्म की सितारा-संस्कृति के मोहपाश से बचना कभी संभव हो पाएगा।

कदाचित इसका जवाब उस गहरी अंतर्दृष्टि में है, जो हमें इन तमाशों की मिथकीय आसक्ति से बचाने में सक्षम बनाए। यह असली जिंदगी का अहसास करने जैसा है- यहां तक कि इन हस्तियों के लिए भी– न कि किसी पिक्चर-पोस्टकार्ड सरीखा। उदाहरण के लिए, ‘नश्वरता की शाश्वता’ से बचा नहीं जा सकता, आज की ब्यूटी क्वीन कल को कंकाल में बदल जाएगी; या आज की खुशी भरी शादी का अंजाम कल को तलाक में हो सकता है या फिर किसी को एकाएक मिला स्टारडम कल को उसे अवांछित-गुमनाम होने की पीड़ा से बचा नहीं सकता! जिंदगी जो होती है, वैसी रहेगी, जिसमें खुशी और ठहाके भरे पल, अनचाही दुर्घटनाएं और त्रासदी के तीव्र लम्हे, उद्वेग एवं उल्लास, मनोचिकित्सीय दवाएं और नींद की गोलियां, यश और गुमनामी, सब कुछ होता है। तथापि, यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है– मेरा मतलब है हम जैसे अनजान लोगों के लिए– यह अहसास करना कि ‘साधारण में भी असाधारणता’ होती है; प्यार की कली संघर्ष में भी खिल सकती है।
प्यार को हीरे की अंगूठी की दरकार नहीं होती; न ही इसकी पूर्ति फेसबुक पर अपने युगल की अंतहीन पोस्ट डालने से होती है। प्यार पर धनी और शक्तिशाली हस्तियों का एकाधिकार नहीं है। बल्कि ज्यादातर अमीरों का अत्यधिक स्व-अहं प्यार के प्रवाह में अड़चन बन जाता है। और ठीक इसी समय, जो साधारण दिखता है, उसमें प्यार का दीदार असंभव नहीं है – मसलन, एक अस्पताल के कैंसर वार्ड में जब एक पति अपनी पत्नी की सेवा-सुश्रूषा करता है, उसके कमज़ोर बदन को साफ करता है या जैसा कि ओ’ हेनरी ने अपनी कालजयी रचना गिफ्ट ऑफ मैगी में किया है, जिसमें डैला और जिम के बीच परस्पर स्पंदनशील रिश्ता है। तथ्य तो यह है कि न तो कोई मिथकीय स्वर्ग है, न ही कोई जादुई जगत। केवल यहीं और वास्तविक समय में ही, हम अर्थ पा सकते हैं या प्यार और सुंदर क्षणों का अनुभव ले सकते हैं।

लेकिन उपभोक्ता-संस्कृति हमें ‘पीछे छूट जाने के डर के साथ जीता’ देखना चाहती है, क्योंकि उसे अपनी परी कथाएं बेचने के लिए हमारा अंतस खाली जो चाहिए।
लेखक समाजशास्त्री हैं।

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